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गुलाब हो या दिल!

संजय जैन 
मुम्बई(महाराष्ट्र)

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मेरे दिल में अंकुरित हो तुम,
दिल की डालियों पर खिलते हो
और गुलाब की पंखुड़ियों
की तरह खुलते हो तुम।
कोई दूसरा छू न ले तुम्हें,
इसलिए काँटों के बीच रहते हो तुम
फिर भी प्यार का भँवरा काँटों
के बीच आकर छू जाता है।
इससे तेरा रूप और भी,
निखार आता है॥

माना कि शुरू में काँटों से,
तकलीफ होती है
जब भी छूने की कोशिश,
करो तो तुम चुभ जाते हो।
और थोड़ा दर्द दे जाते हो,
पर साथ ही तुझे पाने की
जिदको बड़ा देते हो।
दिल में होता है कुछ,
और अपने पास ले आते हो॥

देखकर गुलाब का खिला रूप,
दिल में बेचैनी बड़ा देता है
और पास अपने ले आता है,
रात के सपने से निकाल कर।
सुबह होते ही पास बुलाता है,
और हँसता-खिलखिलाता
अपना चेहरा हमें दिखाता है,
यही मन को लुभाता है॥

मोहब्बत का एहसास गुलाब कराता है,
शान महफिलों की बढ़ाता है
शुभ-अशुभ में भी भूमिका निभाता है,
तभी तो ‘फूल दिवस’ भी मनवाता है।
दिल से कम नहीं है ये,
तभी तो गुलाब को हम दिल से चाहते हैं॥

परिचय–संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।

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