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खुद हो जाते जार-जार

अनिल कसेर ‘उजाला’ 
राजनांदगांव(छत्तीसगढ़)
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पिता ईश्वर का अनुपम उपहार हैं,
माँ घर तो पिता संवारते परिवार हैं।

नारियल-सा दिखते ये सदा ही कठोर,
क्योंकि ये घर की होते छत और दीवार हैं।

माँ होती जीवन की पहली पाठशाला,
पिता होते ज्ञान व संस्कार के भण्डार हैं।

ग़म अपना सारा छुपा कर रख ले अंदर,
बच्चों को देते सिर्फ खुशी और प्यार हैं।

पिता को ठोंकरों से कर देते हैं लाचार,
फ़िर भी रखते खुला दिल का द्वार हैं।

संतान की खातिर खुद हो जाते जार-जार,
मगर समझते नहीं इसे अपना उपकार हैं।

सपनों को अपने जला कर ‘अनिल’,

जीवन में ‘उजाला’ करते बार-बार हैं॥

परिचय –अनिल कसेर का निवास छतीसगढ़ के जिला-राजनांदगांव में है। आपका साहित्यिक उपनाम-उजाला है। १० सितम्बर १९७३ को डोंगरगांव (राजनांदगांव)में जन्मे श्री कसेर को हिन्दी,अंग्रेजी और उर्दू भाषा आती है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी)तथा पीजीडीसीए है। कार्यक्षेत्र-स्वयं का व्यवसाय है। इनकी लेखन विधा-कविता,लघुकथा,गीत और ग़ज़ल है। कुछ रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-सच्चाई को उजागर करके कठिनाइयों से लड़ना और हिम्मत देने की कोशिश है। प्रेरणापुंज-देशप्रेम व परिवार है। सबके लिए संदेश-जो भी लिखें,सच्चाई लिखें। श्री कसेर की विशेषज्ञता-बोलचाल की भाषा व सरल हिन्दी में लिखना है।

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