प्रिया सिंह
लखनऊ(उत्तरप्रदेश)
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गरीबों का भी देश में शारीरिक योगदान है,
क्यों बनता बस अमीरों का सिक्का दान है।
क्या अमीरों की सेवा के पीछे स्वार्थ छिपा है,
या गरीबों के लिए बनता वो शख्स महान है।
कैमरा-मोबाइल-फोटो-वीडियो ये सब क्या है,
क्या मेरी बेइज्जती तेरा दिखावा ही दान है।
हाँ,मानते हैं के बहुत अच्छाई है तुम्हारे अंदर,
समझो जरा मेरे अंदर भी मासूम-सी जान है।
दान एक हाथ से करो दूसरे को खबर ना हो,
तुम्हारे एक-एक पैसे पर छिपा एक कान है।
दान करते हो और सोचते हो पाप कट जाये,
पर तुम्हें तो हर काम के पीछे पैसे का भान है।
पुरोहितों की बात हो या हस्त रेखा का चक्कर,
बस पैसे की बदौलत आज जिन्दा तेरा मान है।
जिन्दगी जीना है एक-दूसरे के सहयोग के साथ,
मरने के बाद क्या कायम रहता तेरा गुमान है।
कर्म बुराई का कटता,अच्छाई का घटता नहीं,
मरा हुआ इन्सान भी अपने कर्म पर हैरान है।
खैर ग़लतफहमी से ही भरने दो गरीबों का पेट,
कम से कम इसी से बनता वह नेक इन्सान है॥
परिचय-प्रिया सिंह का बसेरा उत्तरप्रदेश के लखनऊ में है। २ जून १९९६ को लखनऊ में जन्मी एवं वर्तमान-स्थाई पता भी यही है। हिंदी भाषा जानने वाली प्रिया सिंह ने लखनऊ से ही कला में स्नातक किया है। इनका कार्यक्षेत्र-नौकरी(निजी)है। लेखन विधा-ग़ज़ल तथ कविता है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जन-जन को जागरूक करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महादेवी वर्मा को मानने वाली प्रिया सिंह देश के लिए हिंदी भाषा को आवश्यक मानती हैं।