कुल पृष्ठ दर्शन : 351

संजीदगी से उकेरी त्रासदी ‘शिकारा’

इदरीस खत्री
इंदौर(मध्यप्रदेश)
*******************************************************

‘शिकारा’ विदु विनोद चोपड़ा की फिल्म है, जिसमें अदाकार साहिल खान, सादिया है। संगीत-रेहमान ने दिया है।
फ़िल्म का विषय बेहद संजीदा होने के साथ क्रूर है। यह एक बड़ी त्रासदी को बयां करता है,जिसमे कश्मीर में बसे हुए कश्मीरी पंडितों के विस्थापन को दर्शाया गया है। ऐसे विषय पर फ़िल्म निश्चय ही भूत के गर्त में छिपे उस त्रास को पुनः जीवित करती है। फ़िल्म पर विदु लम्बे अरसे से काम कर रहे थे, जिसमें उन्होंने अपनी माताश्री को श्रद्धाजंली दी है।
रातों-रात घर और अपनी ज़मीन से जुदा हो जाने का दर्द कभी न खत्म होने वाली टीस बन जाता है,इसमें बखूबी दिखा है। फ़िल्म में बड़े सितारे न ले करके विदु ने फ़िल्म के विषय को प्रधानता दी,जो सही भी किया।


#कहानी⤵
कश्मीरी पंडित परिवार शिव कुमार धर (आदिल खान) घाटी में अपनी पत्नी शांति (सादिया) के खुशहाल ज़िन्दगी जी रहे हैं, जिन्होंने आने घर का नाम रखा है ‘शिकारा।’ एक दिन अचानक घाटी में दहशतगर्दी शुरू हो जाती है,जिसमें शिव-शांति को अपना घर छोड़ कर शरणार्थी शिविर में जाना पड़ता है। कश्मीरी पंडितों के घर उजड़ने-छूटने का दर्द आँखों के रास्ते ज़हन में होते हुए दिल तक पहुँचता है।
१९९० की इस घटना पर संसद की खामोशी नि:सन्देह सौतेला व्यवहार बताता है। फ़िल्म में मुहाज़रीन(शरणार्थी)की ज़िंदगी में आने वाली तकलीफें,बेइज़्ज़ती,दर्द,परेशानियों को बेहद संजीदगी से बताया गया है। फ़िल्म का एक दृश्य जिसमें मुहाज़रीन शिविर में टमाटर तकसीम किए जाते हैं,वह दृश्य आपको रूह तक कंपा देगा।
फ़िल्म का अंत विसंगत दृष्टिकोण से बनाया गया है,जिसमें आप भाव-विभोर होकर एक मद्धम मुस्कुराहट के साथ बाहर आ जाएंगे। अंत जानने के लिए फ़िल्म तो देखनी पड़ेगी।
#अदाकारी⤵
साहिल खान ने अपनी पहली फ़िल्म में ही खुद को साबित कर दिया है। सादिया बेहद खूबसूरत होने के साथ बेहद मासूम लगती है। कुछ दृश्यों में वह इतनी संजीदगी से अभिनय कर गई है कि,उनका करियर जल्द ही फ़िल्मी जगत में स्थापित हो जाएगा।
#निर्देशन⤵
विदु ने फ़िल्म के लेखन से निर्देशन के साथ सम्पादन तक ईमानदारी से काम किया है। बेहद ही संजीदगी से एक प्रेम कहानी को कश्मीर की जघन्य घटना से जोड़ा है,जो काबिले तारीफ है।
#संगीत⤵
इरशाद कामिल के गीतों के बोल दिल तक पहुँचते हैं। सन्देश शांडिल्य,अभय सपोरी, रोहित कुलकर्णी ने गीतों को उम्दा सजाया है। रेहमान का स्कोर संगीत फ़िल्म के दृश्यों को ताकत देता है।
#फिल्मांकन⤵
रंगराजन का फिल्मांकन बेहद खूबसूरत है। कश्मीर को जन्नत की तरह पेश किया गया है, वहीं उसे जहन्नुम में तब्दील भी किया गया। एक दृश्य जिसमें शिकारा पर पति-पत्नी की सेज वाला दृश्य ऊँचाई से लेकर उसे बहने दिया है,दिल को छू जाता है।
#अंत में⤵
फ़िल्म का विषय जटिल होने के साथ हृदय विदारक भी है। हमारे देश की राष्ट्रीय समस्याओं में से एक है,जिसे विदु ने ईमानदारी से प्रस्तुत कर दिया है। इस फिल्म को साढ़े ३ अंक यानि सितारे देना बेहतर है।

परिचय : इंदौर शहर के अभिनय जगत में १९९३ से सतत रंगकर्म में इदरीस खत्री सक्रिय हैं,इसलिए किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। परिचय यही है कि,इन्होंने लगभग १३० नाटक और १००० से ज्यादा शो में काम किया है। देअविवि के नाट्य दल को बतौर निर्देशक ११ बार राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व नाट्य निर्देशक के रूप में देने के साथ ही लगभग ३५ कार्यशालाएं,१० लघु फिल्म और ३ हिन्दी फीचर फिल्म भी इनके खाते में है। आपने एलएलएम सहित एमबीए भी किया है। आप इसी शहर में ही रहकर अभिनय अकादमी संचालित करते हैं,जहाँ प्रशिक्षण देते हैं। करीब दस साल से एक नाट्य समूह में मुम्बई,गोवा और इंदौर में अभिनय अकादमी में लगातार अभिनय प्रशिक्षण दे रहे श्री खत्री धारावाहिकों और फिल्म लेखन में सतत कार्यरत हैं। फिलहाल श्री खत्री मुम्बई के एक प्रोडक्शन हाउस में अभिनय प्रशिक्षक हैंl आप टीवी धारावाहिकों तथा फ़िल्म लेखन में सक्रिय हैंl १९ लघु फिल्मों में अभिनय कर चुके श्री खत्री का निवास इसी शहर में हैl आप वर्तमान में एक दैनिक समाचार-पत्र एवं पोर्टल में फ़िल्म सम्पादक के रूप में कार्यरत हैंl

Leave a Reply