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`थप्पड़`-चोट दिल पर लगे तो गूँज अदालत तक

इदरीस खत्री
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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निर्देशक अनुभव सिन्हा निर्देशित इस फिल्म `थप्पड़` में अदाकार-तापसी पन्नू,पावेल गुलाटी,दीया मिर्ज़ा,कुमुन्द मिश्रा,राम कपूर,तन्वी आज़मी,नेला ग्रेवाल तथा मॉनव कौल हैंl

#फ़िल्म से पूर्व चर्चा-
अनुभव का निर्देशन एक अलग आयाम पर पहुँच गया है,क्योंकि पहले `मुल्क`,फिर `आर्टिकल १५`,अब `थप्पड़l` इसे कुछ इस तरह से देखा जाए कि पहले देश,फिर समाज,अब पारिवारिक सम-सामयिक समस्या को इंगित करती फ़िल्म हैl फ़िल्म का विषय बेहद छोटा,लेकिन अपने-आपमें बड़ी एहमियत रखता हैl जब थप्पड़ किसी इंसान के अना,बका,या अस्तित्व पर पड़ जाए तो उसकी गूंज बड़ी दूर तलक सुनाई देती हैl यह पुरुषार्थ के अहम को ठेस लगाती फ़िल्म हैl थप्पड़ पड़ना बड़ी बात नहीं,क्यों मारा गया ?,यह बड़ा मुद्दा बनाया गया हैl
#कहानी-
दिल्ली में अलग-अलग ख्यालात की कुछ चुनिंदा महिलाओं को आइसक्रीम खाते दिखाया जाता है,मानो फ़िल्म कुछ महिलाओं की कहानियों का कोलाज या गुलदस्ते की तरह है,जिसमें किस्म-किस्म के फूल लगे हुए हैंl फ़िल्म में आपको धैर्य साथ रखना होगा, फ़िल्म की रफ्तार सुस्त है,लेकिन निशाना अचूक हैl
अमृता(तापसी) एक घरेलू महिला है,जो अपने पति विक्रम(पावेल) का ख्याल एक माँ की तरह रखती है, इधर विक्रम अपने काम-काज को लेकर बेहद संजीदा हैl दफ्तर की सियासत कैसे घरों को बर्बाद करती है,यही विषय फ़िल्म में प्रवेश करता है,और फ़िल्म शीर्षक पर आ जाती हैl फ़िल्म में घरेलू हिंसा तो दिखाई ही गई है,लेकिन पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं की स्थिति का भी धीमे से बखान करती है,लेकिन यहाँ पति द्वारा थप्पड़ केवल इस बात पर मार दिया जाता है कि पत्नी ने पति की बात को काट दिया, तो यह थप्पड़ उस महिला के आत्मसम्मान पर जाकर लगता है और इसकी गूंज अदालत (कचहरी)तक सुनाई देती हैl अलग-अलग महिलाओं की इच्छाओं की घर परिवार के लिए तिलांजलि को भी खूबसूरती से दिखाया गया हैl गुलदस्ते में एक फूल अमृता भी हैl
एक वकील,जो अपने पति की शोहरत से घुटती है,तो एक शेफ से अपने दु:ख-दर्द साझा करने लगती हैl अमृता को मारा गया थप्पड़ इतना बड़ा मुद्दा नहीं कि, कोई पत्नी घर छोड़ कर चली जाए,वह भी तीन से चार दिन बादl मुद्दा थप्पड़ क्यों मारा गया,यह बनता है जिसे अलग-अलग लोगों के नज़रिए से फ़िल्म में समझाया गया हैl जब कानूनी कमरों में पारिवारिक लड़ाई पहुँचती है तो अहम और वहम दोनों को बढ़ावा मिलता है, लेकिन इस बीच अमृता की गोद भराई की रस्म आ जाती हैl यह दृश्य आपकी आँखें नम करके परिवार की एहमियत दर्शाता हैl फ़िल्म में अमृता की कामवाली बाई सुनीता (गीतिका वैध)की भी एक कहानी साथ-साथ चलती है,जो चटपटी होने के साथ मजेदार भी लगती हैl एक छोटा किरदार दीया मिर्ज़ा का भी है,पर क्यों है समझ नहीं आताl अंत में सभी कहानियों के अलग-अलग फूलों को गुलदस्ते में सज़ा दिया जाता है,तो अंत के लिए फ़िल्म देखना बनती ही हैl
#संगीत-
फ़िल्म में महज़ एक गाना है-`एक टुकड़ा धूप…`, फ़िल्म का पार्श्व संगीत याद दिलाता है कि,फ़िल्म का विषय छोटा है,पर पूरी फिल्म उस विषय पर कस गई हैl
#अदाकारी-
तापसी ने खुद को दक्षिण सिनेमा में न केवल सिद्ध किया,वरन स्थापित भी किया थाl तापसी पर यह इल्ज़ाम सरासर गलत लगाया जा रहा था कि,वह कंगना की नकल करती हैl पवेल गुलाटी जिसने अनुराग कश्यप की अंतरजाल श्रंखला `युद्ध` से पर्दापण किया था,उनमें अभिनय की असीम क्षमताएं भरी हुई हैंl अगले साल सर्वश्रेष्ठ पर्दापण अभिनेता का सम्मान पा ले,तो अचरच नहीं होगाl रत्ना पाठक, कुमुन्द मिश्रा,माया सराओ,गीतिका वैध ने अपने किरदार इमानदारी से निभाए हैंl
#बजट-
फ़िल्म कम बजट की हैl लगभग १८-२० लाख बताया जा रहा है,जो सेटेलाइट और डिजिटल अधिकार बेच कर निकल आएगाl सिनेमाघरों में यह फ़िल्म कुछ खास दर्शकों को ही खींच पाएगीl फ़िल्म से ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती कि,बजट से ज्यादा पैसा सिनेमाघरों से निकाल पाएगीl
#अंत में चर्चा-
देश में सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनती आई हैं,जैसे- `मदर इंडिया`,`सुजाता`,`दो आँखें बारह हाथ`,`मिर्च मसाला`,`बाज़ार`,`अर्थ`, `अंकुश`,`अछूत कन्या`, `अस्तित्व`,`पिंक` जैसी कई फिल्में जिन्होंने हिंदी सिनेमा को नया मुकाम दिया हैl फ़िल्म की रफ्तार भले ही धीमी हो,पर निशाना सटीक बैठता नज़र आता हैl अनुभव दूसरी पारी की इस तीसरी फिल्म से धर्म और देश,सामाजिक, पारिवारिक समस्याओं का कोलाज बनाने में जुटे हुए हैंl फ़िल्म बताती है कि थप्पड़ का मतलब महज़ चेहरे पर मारा गया हाथ का वार नहीं, लेकिन कभी-कभी यह थप्पड़ की की नारी अस्मिता पर पड़ जाता हैl इस फिल्म को ३ सितारे दिए जाना सही हैl

परिचय : इंदौर शहर के अभिनय जगत में १९९३ से सतत रंगकर्म में इदरीस खत्री सक्रिय हैं,इसलिए किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। परिचय यही है कि,इन्होंने लगभग १३० नाटक और १००० से ज्यादा शो में काम किया है। देअविवि के नाट्य दल को बतौर निर्देशक ११ बार राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व नाट्य निर्देशक के रूप में देने के साथ ही लगभग ३५ कार्यशालाएं,१० लघु फिल्म और ३ हिन्दी फीचर फिल्म भी इनके खाते में है। आपने एलएलएम सहित एमबीए भी किया है। आप इसी शहर में ही रहकर अभिनय अकादमी संचालित करते हैं,जहाँ प्रशिक्षण देते हैं। करीब दस साल से एक नाट्य समूह में मुम्बई,गोवा और इंदौर में अभिनय अकादमी में लगातार अभिनय प्रशिक्षण दे रहे श्री खत्री धारावाहिकों और फिल्म लेखन में सतत कार्यरत हैं। फिलहाल श्री खत्री मुम्बई के एक प्रोडक्शन हाउस में अभिनय प्रशिक्षक हैंl आप टीवी धारावाहिकों तथा फ़िल्म लेखन में सक्रिय हैंl १९ लघु फिल्मों में अभिनय कर चुके श्री खत्री का निवास इसी शहर में हैl आप वर्तमान में एक दैनिक समाचार-पत्र एवं पोर्टल में फ़िल्म सम्पादक के रूप में कार्यरत हैंl

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