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शांतिपूर्ण समाज के लिए बड़ा खतरा सोशल साइट्स

डॉ.सत्यवान सौरभ
हिसार (हरियाणा)
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फेसबुक,ट्विटर,गूगल और कई अन्य सोशल मीडिया मंच ने हमारे संवाद करने के तरीके में क्रांति ला दी है। ये मंच आज ज्यादातर बात करने के लिए उपयोग किए जाते हैं,यही नहीं ये सार्वजनिक तौर पर बहुत बड़ा प्रभाव डालते हैं,लेकिन सुरक्षा के उचित नियमों के अभाव में ये अतिसंवेदनशील हैं। तभी तो लोग इनका इस्तेमाल नफरत फैलाने वाले भाषणों के प्रचार के लिए कर रहे हैं,और आतंकी संगठनों ने तो इसे एक तेज हथियार की जगह इस्तेमाल कर युवाओं को कट्टरपंथी बनाने,नफरत और हिंसा के संदेश को फ़ैलाने का माध्यम बना लिया है,जो किसी भी देश की आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित करता है। इन मंचों पर यह आरोप भी लगा है कि,म्याँमार के रोहिंग्या मुस्लिमों के विरुद्ध अभद्र व भेदभावपूर्ण सामग्री डाली है, जिसने लोगों के मन में घृणा को फैलाने में सहायता की है। संयुक्त राज्य अमेरिका में रंगभेद आन्दोलन के विरुद्ध भी फेसबुक में घृणा व भेदभावपूर्ण सामग्री डाली गई थी। इस बात पर फेसबुक ने तटस्थता के सिद्धांत का हवाला देते हुए कहा है कि,वह घृणास्पद या नफरत फैलाने वाले भाषणों के विरुद्ध कार्रवाई करने या उन्हें रोकने के लिये अभी तैयार नहीं है। तभी तो आज ३०० से अधिक बहु-राष्ट्रीय संस्थानों ने दुनिया के सबसे बड़े सोशल मीडिया मंच (फेसबुक) पर विज्ञापन देना बंद कर दिया है।
नकली समाचार एक जान-बूझकर झूठ या आधा सच है,जो लोगों के एक वर्ग को गुमराह करने या नुकसान पहुंचाने के इरादे से प्रसारित किया जाता है। यह एक प्रकार की पीत पत्रकारिता है,जिसमें पारंपरिक छपाई या अंतरजाल आधारित सोशल मीडिया के माध्यम से जानबूझकर गलत सूचना या झांसा दिया जाता है। घृणा भाषण अपने धार्मिक विश्वास,यौन अभिविन्यास,लिंग और इसी तरह हाशिए के व्यक्तियों के एक विशेष समूह के खिलाफ घृणा के लिए उकसाना है। भारत में विधि आयोग ने अभद्र भाषा पर अपनी २६७ वीं रिपोर्ट में कहा कि इस तरह के बयानों से व्यक्तियों और समाज को आतंकवाद,नरसंहार और जातिय सफाई के लिए उकसाने की क्षमता है।
अभद्र भाषा और फर्जी समाचार दोनों के अतिव्यापी क्षेत्र हैं,और समाज के शांतिपूर्ण आदेश के लिए एक बड़ा खतरा हैं। इन सोशल साइट्स पर यह पता लगाना बहुत मुश्किल है कि,ऐसी सामग्री कौन प्रदर्शित कर रहा हैl शिक्षा का स्तर कम होने के कारण भारतीय जनता पश्चिम की तुलना में अधिक संवेदनशील है। भारत में आईपीसी के ६-७ प्रावधानों के तहत अभद्र भाषा को शामिल किया गया है। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि घृणा व भेदभावपूर्ण सामग्री आदि को विनियमित करने की दिशा में सरकार को तेज़ी से कार्य करना चाहिए,मगर कानूनी चिंताएँ अक्सर सोशल मीडिया मंच के आड़े आ जाती हैl तभी कई मामलों में बोलने की स्वतंत्रता की रक्षा करने और ऑनलाइन सामग्री को बनाए रखने की ओर झुकाव के फलस्वरुप मजबूत निर्णय नहीं आ पाते हैं।
आज इस समस्या से निपटने के लिए स्पष्टता और तकनीकी उन्नयन की आवश्यकता है,सोशल मीडिया मंच के दुरुपयोग को रोकने व उपलब्ध ऑनलाइन घटक की जांच करने के लिए विभिन्न नियमों एवं दिशा-निर्देशों में सामंजस्य स्थापित करना अत्यावश्यक है। भारतीय दंड संहिता,सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत प्रासंगिक प्रावधानों का एकीकरण करने की आवश्यकता है। साथ ही इंटरनेट पर प्रसारित होने वाली घृणा व भेदभावपूर्ण सामग्री से निपटने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी के दिशा-निर्देश को लागू किया जाना चाहिए।
पुलिस बलों और कानूनी निकायों के बीच समानता और गैर-भेदभाव में प्रशिक्षण के स्तर में सुधार,अनुसंधान में सुधार और ऐसी सामग्री की रपट को प्रोत्साहित करना भी अत्यंत जरूरी है। सामाजिक नेटवर्क पर जन-जागरूकता बढ़ाना भी बेहद अहम है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कानून हो,जो किसी विशेष राष्ट्र की सरकार से अनुरोध होने पर २४ घंटे के भीतर स्पष्ट रूप से अवैध सामग्री को हटाकर नफरत फैलाने वाले भाषण से निपटने के लिए जिम्मेदारी लेता हो। सोशल मीडिया मंचों को पारदर्शिता,जवाबदेही,नियमों और दिशा-निर्देशों की एक प्रणाली सुनिश्चित करने के लिए ज़िम्मेदारी लेने की ज़रूरत हैl
सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभाव को सीमित करने के लिए एक बेहतर और अधिक प्रभावी दृष्टिकोण मीडिया साक्षरता को बढ़ाना है। सरकार को इस पर एक नीतिगत रूपरेखा तैयार करनी चाहिए। नकली समाचारों से वास्तविक समाचारों की पहचान कैसे करें,इस पर नागरिकों को शिक्षित करने के लिए भारत सरकार स्थानीय समाचार समूहों के साथ साझेदारी कर सकती है। दूसरे,सोशल मीडिया वेबसाइटों को ऐसी गतिविधियों के प्रति जवाबदेह बनाया जाना चाहिएl

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