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जब तक सही समय न आए,अंकीय शिक्षा बेहतर

प्रियंका सौरभ
हिसार(हरियाणा)

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मानव संसाधन विकास मंत्रालय फिलहाल विद्यालयों को खोलने की जल्दी में कतई नहीं है,लेकिन भारत में कुछ राज्य इन सबके बावजूद भी विद्यालय खोलने की कवायद में जी-जान से जुटे हैं। पता नहीं,उनकी क्या मजबूरी है ? लगता है वो विद्यालय माफियाओं के दबाव में है। आपातकालीन स्थिति में इस तकनीकी युग में बच्चों को शिक्षित करने के हमारे पास आज हज़ारों तरीके है। ऑनलाइन या अंकीय(डिजिटल) पढ़ाई से बच्चों को घर पर ही पढ़ाया जा सकता है, तो विद्यालयों को खोलने में इतनी जल्दी क्यों ? वैश्विक महामारी जिसमें सामाजिक दूरी ही एकमात्र उपाय है, तो इस दौरान विद्यालय खोलने में इतनी जल्बाजी क्यों ? सरकारों को चाहिए कि,जब तक कोरोना का टीका नहीं आता,विद्यालय न खोले जाएं। सरकार, शिक्षा माफियाओं के दबाव में न आए। ऐसे लोगों को न ही ज़िंदगी और न बच्चों के भविष्य की चिंता है,इनको चिंता है तो बस फीस वसूलने की।
कोविड-१९ महामारी की वजह से सभी विद्यालय पिछले ५ माह से बंद हैं और आज देशभर के विद्यालयों के करीब २४० लाख से अधिक बच्चे अपने घरों में बैठे हैंl वो मनभावन घंटी कब बजेगी,विद्यालय कब खुलेंगे,कहना बहुत मुश्किल हैl इस बात को ध्यान में रखते हुए मंत्रालय ने ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा के लिए नई मार्गदर्शिका जारी की है,जिसके तहत अब शिक्षा पर महामारी के प्रभाव को कम करने के लिए विद्यालयों को न केवल अब पढ़ाने और सिखाने के तरीके को बदलकर फिर से शिक्षा प्रदान करने के नए तरीके तैयार करने हैं, बल्कि घर पर विद्यालयीन शिक्षा और शाला में विद्यालय के एक संतुलित मिश्रण के जरिए बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के नए-नए तरीके भी अमल में लाने हैंl
हाल ही में जारी किए गए नए दिशा-निर्देश विद्यार्थियों के वर्तमान दृष्टिकोण से विकसित किए गए हैं,जो तालाबन्दी के कारण पिछले कई माह से अपने घरों में ऑनलाइन-मिश्रित- अंकीय(डिजिटल)शिक्षा के जरिए पढ़ाई कर रहे हैंl प्राथमिक से पहले के बच्चों के लिए माता-पिता के साथ बातचीत करने और उनका मार्गदर्शन करने के लिए समय सीमा निर्धारित की गई है,ताकि अभिभावक उनको तय समय दे सकें।
आज विद्यालय प्रशासकों,विद्यालय प्रमुखों, शिक्षकों,अभिभावकों और छात्रों के लिए दिशा-निर्देशों की रूपरेखा एवं मूल्यांकन की जरूरत है। ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा की अवधि,समय,समावेश,संतुलित ऑनलाइन और ऑफ-लाइन गतिविधियों की योजना बनाते समय सावधानी रखने की जरूरत है,जिनमें संसाधन अवधि,स्तर वार वितरण आदि शामिल हो।
डिजिटल शिक्षा के दौरान शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण सम्बन्धी बातों की अहम् भूमिका है। साइबर सुरक्षा और नैतिक प्रथाओं सहित साइबर सुरक्षा को बनाए रखने वाली सावधानियां और उपायों पर दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है। महामारी के प्रभाव को कम करने के लिए विद्यालयों को न केवल अब तक पढ़ाने और सीखने के तरीके को फिर से तैयार करना और फिर से कल्पना करना है,बल्कि घर पर शालेय शिक्षा के एक स्वस्थ मिश्रण के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की एक उपयुक्त विधि भी पेश करनी होगी।
शालाएं खुलीं तो ‘कोरोना’ संक्रमण पर काबू पाना मुश्किल हो जाएगा,क्योंकि अभी लगातार पॉजिटिव मामले बढ़ रहे हैं। ऐसे बिगड़े हालात में विद्यालय अगर खुले और बच्चों को विद्यालय भेजा गया तो संक्रमण पर काबू पाना और भी मुश्किल हो जाएगा। अधिकांश सरकारी और निजी विद्यालयों के अंदर प्रत्येक बच्चे हेतु अलग से शौचालय का प्रबंध कर पाना मुश्किल है और ‘सामुदायिक दूरी’ के नियमों का अनुपालन भी संभव नहीं है।
अब शिक्षा के तौर-तरीके बदलने ही होंगे, जिसके लिए शिक्षकों और छात्रों को तैयार रहने और नए तरीके से कार्यशैली की सख्त जरूरत है। भविष्य में छात्रों के स्वास्थ्य और सुरक्षा,विद्यालयों में सफाई को लेकर विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है,क्योंकि कितने भी नियम बना लिए जाएं लेकिन विद्यालय खुलने के बाद बच्चों से पालन करा पाना मुश्किल होगा। सरकार को इस तरह का फैसला उन निजी विद्यालय संचालकों और शिक्षा माफियाओं के दबाव से हटकर लेना चाहिए,जिनको बच्चों के स्वास्थ्य से ज्यादा फीस वसूली की चिंता ज्यादा सता रही है। सरकार को लाख बार सोचना होगा, कहीं ये पाठशाला ही प्रयोगशाला न बन जाए। इजरायल का उदाहरण हमारे सम्मुख है,जहाँ हज़ारों बच्चे व शालेय अमला विद्यालय खुलते ही कोरोना से संक्रमण बढ़ रहा है,जिससे बच्चों की जान पर भी भारी जोखिम होगा। जब तक कोरोना की रोकथाम का इलाज इजाद नहीं होता,तब तक सरकार व विभाग जबरदस्ती स्कूलों को न खुलवाएं।

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