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बदली हवा

निर्मल कुमार शर्मा  ‘निर्मल’
जयपुर (राजस्थान)
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तक़ाज़ा है उम्र का,अब,रहूँ घर में ही अपने,
जवां पीढ़ी ये बोली,हक़ हमारा,हम रहेंगेl

नशेमन थे कभी आबाद,इन शाख़ों पे इनके,
लगे बूढ़े शज़र से,रुख बदलने,अब परिंदेl

जवां जब तक खियाबां था,रहे चर्चे चमन के,
लगी बुझने जो अब शमा,लगे जाने पतंगेl

वो ख़ुद आरा हैं गर,खुद्दार हम भी कम नहीं हैं,
उम्र बीती भले हो,पर नहीं काँधे झुकेंगेl

आँधियों को ज़माने की भी,अब,इल्ज़ाम क्या दें,
दीयों में तेल ही ना हो,तो वो कैसे जलेंगेl

मुबारक़ हो उन्हें,कि मिल गया उनको ठिकाना,
हमारा क्या,जहाँ ठहरे,बसेरा कर ही लेंगेll
(इक दृष्टि यहाँ भी:तक़ाज़ा=माँग,नशेमन= घोंसला,शज़र=वृक्ष,खियाबां=फूलों की क्यारी,ख़ुद आरा=अभिमानी,खुद्दार= स्वाभिमानी,बसेरा=अस्थाई निवास)

परिचय–निर्मल कुमार शर्मा का वर्तमान निवास जयपुर (राजस्थान)और स्थाई बीकानेर (राजस्थान) में है। साहित्यिक उपनाम से चर्चित ‘निर्मल’ का जन्म १२ सितम्बर १९६४ एवं जन्म स्थान बीकानेर(राजस्थान) है। आपने स्नातक तक की शिक्षा (सिविल अभियांत्रिकी) प्राप्त की है। कार्य क्षेत्र-उत्तर पश्चिम रेलवे(उप मुख्य अभियंता) है।सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आपकी साहित्यिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भागीदारी है। हिंदी, अंग्रेजी,राजस्थानी और उर्दू (लिपि नहीं)भाषा ज्ञान रखने वाले निर्मल शर्मा के नाम प्रकाशन में जान्ह्वी(हिंदी काव्य संग्रह) और निरमल वाणी (राजस्थानी काव्य संग्रह)है। प्राप्त सम्मान में रेल मंत्रालय द्वारा मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार प्रमुख है। आप ब्लॉग पर भी लिखते हैं। विशेष उपलब्धि में  स्काउटिंग में राष्ट्रपति से पुरस्कार प्राप्त ‘विजय रत्न’ पुरस्कार,रेलवे का सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त, दूरदर्शन पर सीधे प्रसारण में सृजन के संबंध में साक्षात्कार,स्व रचित-संगीतबद्ध व स्वयं के गाये भजनों का संस्कार व सत्संग चैनल से प्रसारण है। स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन होता रहता है। लेखनी का उद्देश्य- साहित्य व समाज सेवा है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-प्रकृति व समाज है। विशेषज्ञता में स्वयं को विद्यार्थी मानने वाले श्री शर्मा की रूचि-लेखन,गायन तथा समाज सेवा में है।

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