लोक पर्व ‘गोबरधन’

बाबूलाल शर्मा सिकंदरा(राजस्थान) ************************************************* ‘गोधन पशुधन धन बड़े,कृष्ण बढ़ाये मान! व्यापक गोबरधन हुआ,करिये मान सुजान!!’ ‘गोवर्धन’ को हम ‘गोबरधन’ भी कहते रहें तो क्या हानि है। गोवर्धन एक व्यापक शब्द है जो हमें गो(पृथ्वी),गोवंश एवं किसान के प्रति सम्मान व संरक्षण का बोध कराता है । ‘गोबरधन’ और भी व्यापक शब्द है,जो हमें समस्त पशुधन … Read more

दीप पर्व

बाबूलाल शर्मा सिकंदरा(राजस्थान) ************************************************* माटी का दीपक लिया,नई रुई की बाति। तेल डाल दीपक जला,आज अमावस राति। आज अमावस राति,हार तम से क्यों माने। अपनी दीपक शक्ति,आज प्राकृत भी जाने। कहे लाल कविराय,राति तम की बहु काटी। दीवाली पर आज,जला इक दीपक माटी। दीवाली शुभ पर्व पर,करना मनुज प्रयास। अँधियारे को भेद कर,फैलाना उजियास। फैलाना … Read more

शरद ऋतु

बाबूलाल शर्मा सिकंदरा(राजस्थान) ************************************************* सर्दी का संकेत हैं,शरद पूर्णिमा चंद्र। कहें विदाई मेह को,फिर आना हे इन्द्र। फिर आना हे इंद्र,रबी का मौसम आया। बोएँ फसल किसान,खेत मानो हरषाया। शर्मा बाबू लाल,देख मौसम बेदर्दी। सहें ठंड की मार,जरूरत भी है सर्दी। मौसम सर्दी का हुआ,ठिठुरन लागे पैर। बूढ़े और गरीब से,रखती सर्दी बैर। रखती सर्दी … Read more

चंद्र,इन्द्र…हम

बाबूलाल शर्मा सिकंदरा(राजस्थान) ************************************************* चंद्र इंद्र नभ देव,सदा शुभ पूज्य हमारे। हम पर रहो प्रसन्न,रखो आशीष तुम्हारे। लेकिन मन के भाव,लेखनी सच्चे लिखती। देव दनुज नर सत्य,कमी बेशी जो दिखती। क्षमा सहित द्वय देव,पुरानी बात सुनाऊँ। लिखता रोला छंद,भाव कुछ नये बताऊँ। शर्मा बाबू लाल,सुनी वह तुम्हें सुनाता। बीत गया युग काल,याद फिर से आ … Read more

तुलसी

बाबूलाल शर्मा सिकंदरा(राजस्थान) ************************************************* दिव्य छंद तुलसी रचे,भारत हुआ कृतज्ञ। मैं,उनके सम्मान में,दोहे लिखता अज्ञll हुलसी तुलसी गंध-सी,सेवित तुलसीदास। भाव आतमा राम से,मानस किया उजासll नरहरि जी सद्गुरु मिले,पायक हनुमत वीर। रत्नावली से राम का,मिला पंथ मति धीरll मानस-मानस में रखे,पहचाने अरि मित्र। तुलसी ने अनुपम रचा,रघुपति राम चरित्रll सन्त असन्त विवेचना,नारि धर्म,नर कर्म। मानस … Read more

साधु

बाबूलाल शर्मा सिकंदरा(राजस्थान) ************************************************* ऐसे सच्चे साधु जन,जैसे सूप स्वभाव। यह तो बीती बात है,शेष बचा पहनाव। शेष बचा पहनाव,तिलक छापे ही खाली। जियें विलासी ठाठ,सुनें तो बात निराली। कहे ‘लाल’ कविराय,जुटाते भारी पैसे। सुरा सुन्दरी शान,बने स्वादू अब ऐसे। टोले साधु सनेह जन,चेले चेली संग। कार गाड़ियाँ काफिला,सुरा सुन्दरी भंग। सुरा सुन्दरी भंग,विलासी भाव … Read more

दिनकर

बाबूलाल शर्मा सिकंदरा(राजस्थान) ************************************************* दिनकर दिनकर से हुए,हिन्दी हिन्द प्रकाश। तेज सूर जैसा रहा,तुलसी सा आभास॥ जन्म सिमरिया में लिये,सबसे बड़े प्रदेश। सूरज सम फैला किरण,छाए भारत देश॥ भूषण सा साहित्य ध्रुव,प्रेमचंद्र सा धीर। आजादी के हित लड़े,दिनकर कलम कबीर॥ भारत के गौरव बने,हिन्दी के सरताज। बने हिन्द के राष्ट्रकवि,हम कवि करते नाज॥ आजादी के … Read more

फूल

बाबूलाल शर्मा सिकंदरा(राजस्थान) ************************************************* रखूँ किस पृष्ठ के अंदर, अमानत प्यार की सँभले। भरी है डायरी पूरी, सहे जज्बात के हमले। गुलाबी फूल-सा दिल है, तुम्हारे प्यार में पागल- सहे ना फूल भी दिल भी, हकीकत हैं,नहीं जुमले। सुखों की खोज में मैंने, लिखे हैं गीत अफसाने। रचे हैं छंद भी सुंदर, भरोसे वक्त बहकाने। … Read more

माँ

बाबूलाल शर्मा सिकंदरा(राजस्थान) ************************************************* साहित्य की पाठशाला (रचनाशिल्प:चार चरण २२ वर्ण प्रति चरण,१०-१२ वर्ण पर यति, चरणान्त गुरु,(२११×७) +२ (भगण×७)+गुरु,चारों चरण समतुकांतl) कर्ण महा तप तेज बली, २१ १२ ११ २१ १२ सुत मात तजे पर मात रखे। ११ २१ १२ ११ १२ १२ वीर सुयोधन मीत मिले, २१ १२११ २१ १२ नित भाव सहोदर … Read more

रोला छंद विधान

बाबूलाल शर्मा सिकंदरा(राजस्थान) ************************************************* साहित्य की पाठशाला …………. (रचना शिल्प:रोला छंद २४ मात्रिक छंद होता है। विषम चरणों में ११ मात्रा और चरणांत २१ से होता है। सम चरणों में १३ मात्रा और चरणांत २२ से होता है। समचरणांत में २२ का विकल्प:-११२,२११,११११ भी मान्य है। दो,दो सम चरणों में समतुकांत हो।) उदाहरण…. . तिरंगा … Read more