शहर
पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** घने कोहरे में लिपटा, धुँआ-धुँआ सा है शहर। फिजां में धीरे घुलता, मीठा-मीठा-सा है जहर। किसी गरीब की फटी, झोली-सा है शहर। उसके शरीर पर लिपटी, मैली कमीज सा है शहर। शर्म बस थोड़ा ढँकती, उघड़ी समीज़-सा है शहर। पेट-पीठ से सटी, भूखी अंतड़ी-सा है शहर, होंठ पर पड़ी … Read more