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विश्वविजय

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’
बसखारो(झारखंड)
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खड़ा हुआ है लौह पुरुष,
एकता भाव जगाने को।
विखण्डित होते भारत,
को अखण्ड बनाने कोll

वर्षों से जो रहा उपेक्षित,
अब सम्मान दिलाने को।
देशप्रेम जीवन समर्पित,
वल्लभ कदम मिलाने कोll

आसमां को छूता परचम,
झंडा तिरंगा लहराने को।
सबसे ऊंचा रहता हरदम,
विश्व पताका फहराने कोll

दौड़ पड़े हैं सब मिलकर,
एकता का पाठ पढ़ाने को।
कदम-कदम आगे चलकर,
खुद को भी साथ बढ़ाने कोll

देख रही अब सारी दुनिया,
भारत बढ़ा हाथ मिलाने को।
फिर उड़ी है सोने की चिड़िया,
खुद विश्वविजयी कहलाने कोll

परिचय- पंकज भूषण पाठक का साहित्यिक उपनाम ‘प्रियम’ है। इनकी जन्म तारीख १ मार्च १९७९ तथा जन्म स्थान-रांची है। वर्तमान में देवघर (झारखंड) में और स्थाई पता झारखंड स्थित बसखारो,गिरिडीह है। हिंदी,अंग्रेजी और खोरठा भाषा का ज्ञान रखते हैं। शिक्षा-स्नातकोत्तर(पत्रकारिता एवं जनसंचार)है। इनका कार्यक्षेत्र-पत्रकारिता और संचार सलाहकार (झारखंड सरकार) का है। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत विभिन्न सामाजिक संस्थाओं से प्रत्यक्ष रूप से जुड़कर शिक्षा,स्वच्छता और स्वास्थ्य पर कार्य कर रहे हैं। लगभग सभी विधाओं में(गीत,गज़ल,कविता, कहानी, उपन्यास,नाटक लेख,लघुकथा, संस्मरण इत्यादि) लिखते हैं। प्रकाशन के अंतर्गत-प्रेमांजली(काव्य संग्रह), अंतर्नाद(काव्य संग्रह),लफ़्ज़ समंदर (काव्य व ग़ज़ल संग्रह)और मेरी रचना  (साझा संग्रह) आ चुके हैं। देशभर के सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। आपको साहित्य सेवी सम्मान(२००३)एवं हिन्दी गौरव सम्मान (२०१८)सम्मान मिला है। ब्लॉग पर भी लेखन में सक्रिय श्री पाठक की विशेष उपलब्धि-झारखंड में हिंदी साहित्य के उत्थान हेतु लगातार कार्य करना है। लेखनी का उद्देश्य-समाज को नई राह प्रदान करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-पिता भागवत पाठक हैं। विशेषज्ञता- सरल भाषा में किसी भी विषय पर तत्काल कविता सर्जन की है।

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