कलम,कागज,और कल्पना
कविता जयेश पनोतठाणे(महाराष्ट्र)**************************************** मेरे अधरों की मुस्कान बन गई हो तुम,काली,लाल,हो या नीलीदिल के कागज पर जब चलती हो,हर एहसास को छू कर रूह में उतरती हो।न जाने किस जन्म के रिश्ते हैं,जो बचपन से संग हम बँधे हैंअब तो मेरी पहचान,बन गई हो तुम।कैसे जताऊँ,कैसे बताऊँ ख़याल दिल,क्या हो तुम इस ज़िन्दगी में मेरे … Read more