हर राज्य में अलग-अलग नाम से होली

शशांक मिश्र ‘भारती’ शाहजहांपुर(उत्तरप्रदेश) ************************************************************************************ रंग और उल्लास के लिए विश्वभर में विख्यात पर्व होली वैसे तो पूरे भारत में और पड़ोसी देश नेपाल में हिन्दू पंचांग के अनुसार मनाया जाता है। पूरा देश इसकेरंग में अपने को डुबो लेता है,पर देश के अनेक राज्यों में यह अलग-अलग नामों से भी मनाया जाता है,जिसको जानकर … Read more

मौसम चुनाव का आया

मालती मिश्रा ‘मयंती’ दिल्ली ******************************************************************** नेता भए कृपाण दुधारी, चारों ओर भरम है भारी। पाँच बरस तक सुध नहिं आई, आज अचानक प्रीत लुटाई। नाना रूप धरे बहुतेरे, लगे लगाने घर-घर फेरे। जब मौसम चुनाव का आया, पल-पल नया रंग दिखलायाl जैसा जँचे रूप वो धारा, शरमाया गिरगिट बेचारा। राजनीति का खेल निराला, मुजरिम बन … Read more

नारी तेरे अदभुत रूप

सोनू कुमार मिश्रा दरभंगा (बिहार) ************************************************************************* ‘अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ स्पर्धा विशेष………………… नारी तेरे कितने रूप, जग में तू सबसे अनुरूप सती,सीता,सावित्री,स्वरूप, गंगा,गौरी,गायत्री,रूप… नारी तेरे अदभुत रूप। प्रेयसी-प्राणनाथ की तुम प्रिय, विश्व-वैभव,अनुपम-अनुनय दुष्ट-दानव का दमन किये, काली,गार्गी,दुर्गा स्वरूप… नारी तेरे अदभुत रुप। चन्द्रमुखी,चन्द्रबदन,चंचल तन, मृदुल,मधुर,मनमोहक,मन रूप से तेरे गुंजित हुआ गगन, शारदे,शक्ति,लक्ष्मी अनुपम रूप… नारी तेरे … Read more

शकुंतला ने कब दुष्यंत को छोड़ा था…

डॉ.नीलिमा मिश्रा ‘नीलम’  इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) ************************************************************** ‘अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ स्पर्धा विशेष………………… शकुंतला ने कब दुष्यंत को छोड़ा था, सीता ने कब राम को पथ में छोड़ा था। यशोधरा की ग़लती मुझे बताओ तुम, सहा उर्मिला ने जो दर्द मिटाओ तुम॥ त्याग दिया नारी को कष्ट सहा उसने, हर क्षण प्रतिपल प्रतिपद दर्द सहा उसने। … Read more

खत्म करो वो धाराएँ…

मालती मिश्रा ‘मयंती’ दिल्ली ******************************************************************** समय की धारा हर पल बहती मानव के अनुकूल, तीन सौ सत्तर कैसी धारा’ बहे सदा प्रतिकूल। जो है निरर्थक नहीं देशहित पैदा करे दुराव, खत्म करो वो धाराएँ जो नहीं राष्ट्र अनुकूल॥ व्याधियों से लड़ते-लड़ते बीते सत्तर साल, बनकर दीमक चाट रहे जो वही बजाते गाल। जुबां खोलने से … Read more