दीप जलाऊँ

बोधन राम निषाद ‘राज’ कबीरधाम (छत्तीसगढ़)************************************************************ (रचना शिल्प:१६/१४) दीप जलाकर इन हाथों से,किरण जहां में फैलाऊँ।चाँद सितारों को झुठलाकर,दूर निशा तम हर जाऊँ॥ रात कालिमा जब भी आए,उजियारा इनसे कर दूँ।गहन तिमिर को चीर-चीर कर,ज्योति पुंज इनमें भर दूँ॥तन-मन को यह करे प्रकाशित,खुशी-खुशी से दीप जलाऊँ।चाँद सितारों को झुठलाकर… मिट्टी का छोटा-सा दीपक,बाती से कुछ कहता … Read more

हिंदी हिंदुस्तान

बोधन राम निषाद ‘राज’ कबीरधाम (छत्तीसगढ़)******************************************************** हिंदी दिवस विशेष….. (रचनाशिल्प: मात्रा भार (१६/१३) हैं हम वासी,हिंदी मेरी जान है।मैंने तन-मन वार दिया है,मेरी जां कुर्बान हैll नमः मातरम् नमः मातरम्,धरती का ये राग है,भारत वासी बेटे हैं हम,सबकी यही जुबान है।हिन्द देश के हैं हम… अंग्रेजी पढ़ लेना तुम सब,बनना मत अंग्रेज तुम,देशद्रोह मत करना साथी,हिन्द … Read more

धर्म-कर्म सब नेक हो

बोधन राम निषाद ‘राज’ कबीरधाम (छत्तीसगढ़)**************************************************** धर्म-कर्म सब नेक हो,रचो एक इतिहास।राह कठिन गर हो भले,होवे सतत् प्रयास॥ दीन-हीन मानव सभी,होते हैं लाचार।करके सेवा धर्म से,करो सभी उपकार॥ धर्म-कर्म करते चलो,दीन-हीन उपकार।झूठ-कपट बाजार में,मत बिकना हर बार॥ अपनी संस्कृति राखिये,छोड़ विदेशी राग।अपना धर्म बचाइये,हे मानव अब जाग॥ राम जन्म का वो समय,अवतारी बन आय।ध्वजा पताका धर्म … Read more

भाग्य विधाता है यही

बोधन राम निषाद ‘राज’ कबीरधाम (छत्तीसगढ़)**************************************************** शिक्षक दिवस विशेष……….. शिक्षक के सम्मान में,आओ आगे वीर।भाग्य विधाता है यही,पूजन करलो धीर॥ शिक्षा से उजियार है,लोक और परलोक।शिक्षा बिन उन्नति नहीं,क्यों करता है शोक॥ ज्ञान और विज्ञान से,आलोकित संसार।मत करना हे साथियों,शिक्षा का व्यापार॥ बिना गुरु सम्भव नहीं,उन्नति और विकास।शिक्षक से बन जात है,काम सकल विश्वास॥ प्रथम गुरु … Read more

पिय की राह देखती

बोधन राम निषाद ‘राज’ कबीरधाम (छत्तीसगढ़)************************************************ (रचना शिल्प:१६/१४) पिय आवन की राह देखती,सुन्दर नारी मतवाली।सपनों में खोई-खोई सी,प्रेम नगर की वो मालीll सज-धज कर बैठी वो द्वारे,गुमसुम-सी वो रहती है।कब आएँगे मेरे दिलबर,नैनों से कुछ कहती हैllकर सोलह श्रृंगार नवेली,लगती फूलों की डाली।सपनों में खोई-खोई सी… उड़ते पंछी देख गगन पर,जाने क्यों वह रोती है।पिय का … Read more

राधे के मन श्याम

बोधन राम निषाद ‘राज’ कबीरधाम (छत्तीसगढ़)******************************************************************** (रचना शिल्प:१६/११)श्याम बसे राधा के मन में,यदु नंदन घन श्याम।हुई बावरी दर्शन खातिर,ढूँढे सुबह व शाम॥ वन-वन फिरती प्रेम दिवानी,कालिंदी के पास।लगन लगे लीलाधारी से,एक आस विश्वास॥हर साँस में श्याम रमा है,रटती है अविराम।हुई बावरी दर्शन खातिर,… यमुना के पावन जल भीतर,परछाई चितचोर।कहाँ छुपे हो कान्हा मेरे,गलियन करती शोर॥मन आँगन … Read more

मन में राम

बोधन राम निषाद ‘राज’ कबीरधाम (छत्तीसगढ़)******************************************************************** मन में राम बसा लो मानव।जीवन धन्य बना लो मानव॥कट जाएँगे पातक भारी।राम सुमिर लो हे संसारी॥ अवध बिहारी दशरथ नंदन।कर लो भक्तों शत् शत् वंदन॥ये जग के हैं पालनहारी।राम लला जग के हितकारी॥ पावन सरयू की जल धारा।बसे अवध जग से है न्यारा॥तुलसी राम चरित लिख डाला।प्रभु मूरत मन … Read more

कच्चे धागों में बँधता है प्यार यहाँ

बोधन राम निषाद ‘राज’ कबीरधाम (छत्तीसगढ़)******************************************************************** रक्षाबंधन पर्व विशेष……….. रक्षाबंधन पर्व मनाएँ,खुशियों का त्यौहार यहाँ।कच्चे धागों में बँधता है,भ्रात-बहन का प्यार यहाँ॥ बचपन की यादों में खोई,घर-आँगन फुलवारी में।खेल-खिलौनों में दिन गुजरा,गुड़ियों की तैयारी में॥अब तो पिया की हुई सहेली,उनसे ही श्रृंगार यहाँ।कच्चे धागों में बँधता है… बहन सजाती हर घर थाली,भैया जी के आवन में।रंग-बिरंगे … Read more

मेंहदी

बोधन राम निषाद ‘राज’ कबीरधाम (छत्तीसगढ़)******************************************************************** (रचनाशिल्प:१६-१४ पदांत २२२)लगे मेंहदी है हाथों में,साजन के घर जाने को।खुशियों से आच्छादित आँगन,स्नेह सुधा बरसाने को॥ मन आह्लादित होता जब-जब,पिय की याद सताती है।आँखों में सपनों की माला,मुझको बहुत रुलाती है॥पी लेती हूँ आँसू अपने,खुद को ही बहलाने को,लगे मेंहदी हैं हाथों में… सावन की यह मधुरिम बेला,हिय में … Read more

आशाओं के पंख

बोधन राम निषाद ‘राज’ कबीरधाम (छत्तीसगढ़)******************************************************************** (रचना शिल्प:१६/१४) मन पंछी का रूप बनाकर,चूँ-चूँ-चूँ गाना गाऊँ।आशाओं के पंख लगाकर,आसमान उड़ता जाऊँ॥ उड़-उड़ सारे ब्रम्हांडों की,सैर सभी कर आऊँगा।मन की इच्छा पूरी होगी,तन हर्षित कर जाऊँगा॥हरे-भरे इन बागों से मैं,कलियाँ सभी चुरा लाऊँ।आशाओं के पंख लगाकर… पास सभी मंजिल भी होंगी,पूरी होंगी इच्छाएँ।सपनों की मैं सैर करूँगा,नहीं रहेगी … Read more