शुभकामनाओं में संभावनाएं

सुनील जैन राही पालम गांव(नई दिल्ली) ******************************************************** शुभकामना संदेश देखकर मन घबरा जाता है। शुभकामना का आना बिना बुलाये मेहमान की तरह खतरनाक हो गया है। शुभकामना दिखाई देती है,पहला प्रश्‍न उठता है-किसने भेजी,क्‍यों भेजी ? पिछले दिनों संबंध कैसे रहे,क्‍या इनसे कभी कोई काम करवाया या किसी काम के लिए,किसी को भेजा है,तमाम प्रश्‍न कौंध … Read more

सावन और बुआजी का आना

सुनील जैन राही पालम गांव(नई दिल्ली) ******************************************************** सावन और बुआजी हर साल आते हैं। सावन के आते ही बच्‍चे खुश हो जाते हैं। सावन की बारिश में नहाने का मजा,पानी में कूद कर लाला जी की धोती को गंदा करने का आनंद और लाला जी का हमारे पीछे-पीछे दौड़ना। मास्‍टरजी साइकल से आते हैं। उनकी पीठ … Read more

‘बारिश-ए-दौरा’

सुनील जैन राही पालम गांव(नई दिल्ली) ******************************************************** ट्रेन का-बारिश का देर से आना और किसान का रोना कोई नई बात नहीं है। बारिश,किसान,कीचड़,जाम,सड़क का बह जाना, आदि-आदि नई बातें नहीं हैं। नई बात तो तब शुरू होती है,जब सरकार नई हो,मंत्री नया हो,मोहल्‍ला नया हो (कच्‍ची कालोनी), रहने वाले नये हों तो समस्‍याएं भी नई … Read more

आओ कचरा करें

सुनील जैन राही पालम गांव(नई दिल्ली) ******************************************************** आओ कचरा करें। तू मेरा कचरा कर,मैं तेरा कचरा करुं और फिर उस कचरे को एक-दूसरे पर फेंक कर कचरा-कचरा खेलें। कचरा करना बुरा है। हम तो आए दिन किसी-न-किसी का कचरा करते ही रहते हैं। तुम भी आओ,कचरा करो। दूसरे का कचरा तो कोई भी करता है,हिम्‍मत है … Read more

चूं चूं का जीत ए जश्‍न

सुनील जैन राही पालम गांव(नई दिल्ली) ******************************************************** चुनाव हो गया। चच्‍चा ने भी अपना दूसरा चक्‍कर पार्क का लगाया और बुढ़ापे को जवानी में बदलने वाले उसूल के तहत जूस का एक गिलास गले से नीचे उतारा और फिर पार्क से बाहर निकल लिए। घर जाकर नहा-धोकर तैयार हुए और सेन्‍ट फेंका शरीर पर,जूती पहनी और … Read more

चूं चूं का `मतदान`

सुनील जैन राही पालम गांव(नई दिल्ली) ******************************************************** जैसे गर्मी बढ़ रही है,पार्क में बरसाती मेंढकों की तरह कसरत करने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है। पहले तो बूढ़े कैलोस्ट्राल कम करने के लिए कमरे को कमर बनाने पर तुले थे,अब तो कमर वाले भी कमरा वालों से प्रतियोगिता करने में लगे हैं। चच्चा पसीने … Read more

हवेली की दीवारें

रमेश चौरिया राही कवर्धा (छत्तीसगढ़) ****************************************************************************** ये रिसती दीवारें, ये फटी-फटी दरारें। अतीत को याद कर, बहाती आँसू की धारें॥ मगर कुछ कह नहीं पाता, अपनी कहानी,अपनी जुबानी। बिन बोले बताता है, देखो! आज इनकी निशानी॥ कभी गूंजती थी आवाजें, हँसी और किलकारियाँ। यहाँ पंछियों का बसेरा, और पशुओं का तबेला॥ नौकर-चाकरों का, होता था रेलम-रेला। … Read more