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आओ कचरा करें

सुनील जैन राही
पालम गांव(नई दिल्ली)

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आओ कचरा करें। तू मेरा कचरा कर,मैं तेरा कचरा करुं और फिर उस कचरे को एक-दूसरे पर फेंक कर कचरा-कचरा खेलें। कचरा करना बुरा है। हम तो आए दिन किसी-न-किसी का कचरा करते ही रहते हैं। तुम भी आओ,कचरा करो। दूसरे का कचरा तो कोई भी करता है,हिम्‍मत है तो अपना कचरा करो और उस कचरे से अपनी इज्‍जत का कचरा करके देखो। दूसरों की इज्‍जत का कचरा करना आसान है। अब तो कचरा करने के भी रिकॉर्ड बन रहे हैं। कौन कितना किसका कचरा कर सकता है। जहां देखो,वहां कचरा है,कचरे के ऊपर कचरा है,कचरे के ढेर के ऊपर स्‍वच्‍छता के बोर्ड लगे हैं। बोर्ड लगाने के पहले कचरा हटाया नहीं जाता। अगर कचरा हटा दिया जाता तो स्‍वच्‍छता का बोर्ड लगाने का क्‍या फायदा होता। अब लोग कचरे को देखते हैं,फिर स्‍वच्‍छता को देखते हैं,कचरा साफ करते नायक को देखते हैं,कुल मिलाकर यही सब सोचते हैं,कचरा इसी नायक ने किया है और अब हटाने का नाटक कर रहा है।
कचरे के दो प्रकार होते हैं,गीला कचरा और सूखा कचरा। सूखा कचरा कार्यालय,संस्‍थाओं में,समाज में मिलता है और राजनीति में गीला कचरा पाया जाता है। सूखा कचरा आप आसानी से साफ कर सकते हैं,लेकिन गीला कचरा आप साफ नहीं कर सकते। वह तो उसी स्थिति में रहेगा। इसीलिए राजनीति का कचरा साफ नहीं होता,न होगा।
हमारे देश में प्रेमी भी कई प्रकार के पाये जाते हैं। कुछ कचरा प्रेमी होते हैं। जब तक वे कचरा न करें,तब तक उनकी रोटी नहीं पचती। सुबह उठते ही ब्रश करने के बाद इधर-उधर नहीं थूका तो उनका दिन खराब हो जाता है। कुछ लोग धृतराष्‍ट्र होते हैं। सामने कूड़ादान है,मजाल है, उसमें कचरा डाल दें। केला खाया और हवा में उछाल दिया। अब कोई गिरे या मरे,उन्‍हें क्‍या! वैसे केले का छिलका हो या पान की पीक,दोनों ही कूड़ेदान में अच्‍छे नहीं लगते। जब दिल्‍ली वाले दिल्‍ली छोड़ कर जाते हैं,कचरा करते हैं और वहां के लोग धन्‍य हो जाते हैं। कचरा करने वालों को सम्‍मान की दृष्टि से देखते और सोचते हैं,उनको इसी बहाने कचरा उठाने का सौभाग्‍य मिला। पान की पीक तो सरकारी दीवारों पर एम.एफ. हुसैन की चित्रकारी की तरह चमकती है। लिफ्ट के चारों कोने चार दिशाओं की तरह आलोकित होते हैं। मजाल कोई लिफ्ट की दीवार से सटकर खड़ा हो सके।
कचरे के पहाड़ प्रगति के पर्वत से भी ऊंचे हैं। जितनी प्रगति नहीं होती,उतना कचरा हो जाता है। हमारी प्रगति का प्रतीक है-कचरा। जितना कचरा ज्‍यादा होगा,उतनी प्रगति अधिक मानी जाएगी। दिल्‍ली में पहाड़ नहीं हैं,प्रगति के पहाड़ नहीं है,प्रदूषण के पहाड़ हैं,कचरे के कई पहाड़ हैं। दिल्‍ली में कचरे के पहाड़ बनाने के लिए ट्रकों से कचरा लादा जा रहा है। हर आदमी कचरा मशीन हो गया है। कचरे के अम्बार लग रहे हैं,कचरा ही कचरा के पोस्‍टर हर ओर दिखाई दे रहे हैं। विद्यालय,थाने आगे,थाने के पीछे कचरा। एक ओर कचरे के पहाड़ हैं तो दूसरी ओर भ्रष्‍टाचार के। कचरा प्रधान अर्थ-व्‍यवस्‍था है। बिना कचरे के अर्थ भी नहीं होता,और व्‍यवस्‍था में तो कचरा है ही।
यक्ष प्रश्‍न-कचरा कैसे दूर किया जाए ? सीधी-सी बात है। मेरा कचरा,तेरा कचरा, सबका कचरा तो कचरा ही है। दूर करने की क्‍या जरूरत है। ऐसा नहीं है कि लोग कचरा दूर करना नहीं चाहते हैं। वे चाहते हैं,और करते भी हैं। मेरा कचरा,दूसरे के घर के आगे। दूसरे,तीसरे के और चौथे का पांचवे के और पांचवे का कचरा मेरे घर के आगे। हो गया कचरा साफ। हमारा प्रयास रहता है कि हर घर के सामने कचरा समान रूप से बना रहे,जैसे हमारे यहां भाईचारा बना रहता है। घर के सामने कचरा होने से हमारे भीतर हर वक्‍त स्‍वच्‍छता का भाव भी बना रहता है। इसीलिए घर,घर के बाहर,चौराहे पर,तिराहे पर कचरा ही कचरा-कचरा ही रहता है।
कचरा करना और उसका इस्‍तेमाल करना एक कला है। कचरे से लोग इन्‍सान बना रहे हैं खिलौने बना रहे हैं,लेकिन हमारे यहां कचरा इतना होता है कि इतने इस्‍तेमाल के बाद भी बच जाता है। एक योजना के तहत अब कचरा करने वाले और कचरे को चाँद पर भेजे जाने पर विचार किया जा रहा है। सुना है चाँद की सड़कें बड़ी उबड़-खाबड़ है,उनको समतल करने की योजना है। इसलिए जिसको जितना कचरा करना है,करें। उसके कचरे को चाँद पर ले जाकर चाँद की सड़कों को समतल करेंगे। फिर कचरा करने का अधिकार केवल उन्‍हीं को होगा जो चांद पर रहेंगे। शुद्ध हृदय से एक-दूसरे का कचरा करें।

परिचय-आपका जन्म स्थान पाढ़म(जिला-मैनपुरी,फिरोजाबाद)तथा जन्म तारीख २९ सितम्बर है।सुनील जैन का उपनाम `राही` है,और हिन्दी सहित मराठी,गुजराती(कार्यसाधक ज्ञान)भाषा भी जानते हैं।बी.कॉम.की शिक्षा खरगोन(मध्यप्रदेश)से तथा एम.ए.(हिन्दी,मुंबई विश्वविद्यालय) से करने के साथ ही बीटीसी भी किया है। पालम गांव(नई दिल्ली) निवासी श्री जैन के प्रकाशन खाते में-व्यंग्य संग्रह-झम्मन सरकार,व्यंग्य चालीसा सहित सम्पादन भी है।आपकी कुछ रचनाएं अभी प्रकाशन में हैं तो कई दैनिक समाचार पत्रों में लेखनी का प्रकाशन होने के साथ आकाशवाणी(मुंबई-दिल्ली)से कविताओं का सीधा और दूरदर्शन से भी कविताओं का प्रसारण हो चुका है। राही ने बाबा साहेब आम्बेडकर के मराठी भाषणों का हिन्दी अनुवाद भी किया है। मराठी के दो धारावाहिकों सहित करीब १२ आलेखों का अनुवाद भी कर चुके हैं। इतना ही नहीं,रेडियो सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में ४५ से अधिक पुस्तकों की समीक्षाएं प्रसारित-प्रकाशित हो चुकी हैं। आप मुंबई विश्वविद्यालय में नामी रचनाओं पर पर्चा पठन भी कर चुके हैं। कुछ अखबारों में नियमित व्यंग्य लेखन करते हैं। एक व्यंग्य संग्रह अभी प्रकाशनाधीन हैl नई दिल्ली प्रदेश के निवासी श्री जैन सामाजिक गतिविधियों में भी सक्रीय है| व्यंग्य प्रमुख है,जबकि बाल कहानियां और कविताएं भी लिखते हैंl आप ब्लॉग पर भी लिखते हैंl आपकी लेखनी का उद्देश्य-पीड़ा देखना,महसूस करना और व्यक्त कर देना है।

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