तृप्ति
विजयसिंह चौहान इन्दौर(मध्यप्रदेश) ****************************************************** कालू,भूरू,और गोरिया यथा नाम तथा गुण के साथ रंग-रूप से भी मेल खाते,तीन दोस्त... तीनों कल रतलाम वाले बाबूजी की शवयात्रा में न्यौछावर की गई चिल्लर…
विजयसिंह चौहान इन्दौर(मध्यप्रदेश) ****************************************************** कालू,भूरू,और गोरिया यथा नाम तथा गुण के साथ रंग-रूप से भी मेल खाते,तीन दोस्त... तीनों कल रतलाम वाले बाबूजी की शवयात्रा में न्यौछावर की गई चिल्लर…
डाॅ.आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद (गुजरात ) **************************************************************** 'प्रेम' को बचाने की जद्दोजहद में, मिटता जा रहा है प्रेम मिट रहा है अपनत्व,स्नेह माता-पिता और बच्चों के बीच, दादा-दादी और नाती-पोतों…
हिन्दीभाषा.कॉम मंच के रचनाकार साथी डॉ.सरला सिंह का ०४ अप्रेल को शुभ जन्मदिन है..इस पटल के माध्यम से आप उनको शुभकामनाएं दे सकते हैं…..
सुरेन्द्र सिंह राजपूत हमसफ़र देवास (मध्यप्रदेश) ******************************************************************************* इस महीने रमेश के वेतन से ८० प्रतिशत पैसा पत्नी के इलाज़ में खर्च हो चुका था। एक बार डॉक्टर के पास जाने की…
उज्जवल कुमार सिंह ‘उजाला’ नजफगढ़(नई दिल्ली) ****************************************************************** कलम की नोक से कागज की कोख पर, कहानियाँ जवानी की मजबूरियाँ दीवानी की, मन के गुबार को हरदम लिखता हूँ कागज को…
डाॅ.आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद (गुजरात ) **************************************************************** पेड़ पुकारते हैं, जब रात में सो रहे होते हैं पेड़ धूप और चिड़िया के स्वप्न में डूबे होते हैं, वे आरियाँ चलाते…
सुरेन्द्र सिंह राजपूत हमसफ़र देवास (मध्यप्रदेश) ******************************************************************************* पहले ही थे गाल गुलाबी, रंग चढ़ गया होली का। साजन ने मारी पिचकारी, निखर गया रंग चोली का। यौवन पर हुआ देहरी के,…
डाॅ.आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद (गुजरात ) **************************************************************** माँ अंधी थी हमारी, पिताजी की उंगली पकड़कर उम्र भर चलतीं रहीं। अगर वे उन्हें रुकने को कहते तो वे रुक जाती थीं,…
विजयसिंह चौहान इन्दौर(मध्यप्रदेश) ****************************************************** मुर्गी के दड़बे में फड़फड़ाती मुर्गियां अंतिम साँसों को गिन रही थी। बेजुबाँ,कभी कसाई के छुरे को,खून के छींटों को,तो कभी दम तोड़ती, खाल उधड़ती मुर्गियों…
रमेश कुमार सिंह ‘रुद्र’ कैमूर(बिहार) *************************************************** सृष्टि की रचनाकार, जिनके कई प्रकार, सागर ममता लिए, नित्य दिन रहती। कहलाती कभी दुर्गा, कभी काली बन जाती, चंडिका भवानी बन, पाप नाश…