कुल पृष्ठ दर्शन : 459

बेरंग होली

सुरेन्द्र सिंह राजपूत हमसफ़र
देवास (मध्यप्रदेश)
*******************************************************************************
इस महीने रमेश के वेतन से ८० प्रतिशत पैसा पत्नी के इलाज़ में खर्च हो चुका था। एक बार डॉक्टर के पास जाने की देर है,फ़िर तो ये जाँच ,वो जाँच दवाई से चार गुना रुपया डॉक्टर द्वारा लिखी गई जाँच में खर्च हो जाता है। एक बार तो उसके मन में आया कि,ये डॉक्टर लोग इतनी सारी जाँच क्यों लिखते हैं ? सीधे-सीधे दवाई क्यों नहीं लिखते,लेक़िन एक साधारण इन्सान क्या जाने! उसे तो इलाज़ के बाद मरीज़ को आराम से मतलब। कारख़ाने में लगी नई- नई नौकरी के बाद पहली बार तो वह बड़ी ख़ुशी-ख़ुशी अपनी पत्नी को लिवा कर लाया था। कई सपने संजोए हुए थे आँखों में,घर संसार के कर्त्तव्यों को पूरा करना चाहता था। पिताजी की मृत्यु के बाद गांव में रहने वाली माँ और छोटी बहन की जिम्मेदारी भी उसे ही उठानी थी। उसे क्या मालूम था कि पत्नी यहाँ आकर इस तरह बीमार हो जाएगी। अपने काम पर जाए कि घर पर बीमार पत्नी की देखरेख करे,बड़ी उलझन थी। आख़िर न चाहते हुए भी वह पत्नी को उसके मायके छोड़ आया। मकान मालिक को विनती की थी कि थोड़े दिन में किराए के पैसे दे दूंगा,लेकिन अब क्या सारे पैसे इलाज में खर्च हो चुके थे। मकान मालिक बड़ा सख़्त था,दो बार किराए के पैसे मांग चुका था। उसे रमेश की पत्नी की बीमारी से या उसकी परेशानियों से कोई मतलब नहीं था,उसे तो अपने किराए के रुपयों से वास्ता था। उसने आज आख़िरी चेतावनी दे दी थी कि अगर दो दिन में किराए के पैसे नहीं दिए तो वह सामान बाहर फेंक देगा। औद्योगिक क्षेत्र की बस्तियों में ऐसा ही माहौल होता है। अचानक से उसे ध्यान आया कि दो दिन बाद तो होली है उसने बड़ी विनम्रता से मकान मालिक के हाथ जोड़ते हुए किराया अगले माह देने की बात कही,लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ। औद्योगिक क्षेत्र की मज़दूर बस्तियों के मकान मालिक, दुकानदार,किराना व्यापारी संवेदनाहीन होते हैं, क्योंकि वहाँ लोगों की माली हालत अच्छी नहीं होने के कारण उधार समान मांगने वालों की संख्या ज़्यादा रहती है। कारख़ाने में अपने एक- दो मज़दूर साथियों से पैसे उधार मांगने की कोशिश की,लेकिन सफलता नहीं मिली,क्योंकि वहाँ अधिकांशतः मजदूरों की आर्थिक स्थिति लगभग एक जैसी रहती है। आज होली की पूर्णिमा है,रमेश अपने कारखाने की द्वितीय पाली यानी शाम ४ से १२ बजे रात तक की डयूटी में था। उसे रह-रहकर अपने गाँव की याद आ रही थी। होली पर किस तरह वो अपने दोस्तों के साथ मस्ती करता था। पिताजी की छत्र-छाया तले उसे भविष्य की कोई चिंता नहीं थी। आज गाँव के हर घर में होली का पूजन हो रहा होगा…वह इस समय कारख़ाने में इसी ख़्याल में खोया हुआ था,तभी पीछे से सुपरवाइज़र ने आवाज़ लगाई-“रमेश कहाँ खोए हो,अपना काम करो।” पुरानी यादों से निकलकर वह यथार्थ के धरातल पर आ गया, और वापिस अपने काम में लग गया। घर पहुँच कर जैसे-तैसे रात गुज़री और सुबह होते ही मकान मालिक दरवाज़े पर आ धमका किराए के पैसे मांगने। रमेश ने बहुत अनुनय-विनय की लेकिन मकान मालिक को न होली के त्यौहार से कोई मतलब था,न ही उसकी मजबूरियों से। अभी शाम तक पैसे नहीं दिए तो अपना सामान बांधकर चल देना यहाँ से। यहाँ बहुत किरायेदार हैं जो दो महीने की पेशगी देने को तैयार हैं।
इधर मोहल्ले में धुलेंडी के रंगों की मस्ती शुरू हो चुकी थी,लेकिन रंगों के इस त्यौहार पर वह कितना बेरंग था,इसे सिर्फ़ वो समझ रहा था। अचानक उसके दिमाग़ में आया कि उसी के गाँव के पास वाले गाँव का एक और लड़का यहाँ नौकरी करता है। उसकी माली हालत उससे अच्छी है,क्यों न उसके घर होली मिलने के बहाने जाऊँ,शायद कुछ पैसों की मदद मिल जाये। अब तक मोहल्ले में और जगह-जगह होली के रंग पूरे शबाब पर आ चुके थे। गली- गली में डीजे और ढोल-ढमाकों के साथ लोग नाच-गाकर होली की मस्ती में डूबे हुए थे। रमेश अपने मन में एक आस लिये घर से निकल पड़ा था अपना उदास चेहरा लिये,कि उसके परिचित के यहाँ से शायद पैसे का इंतज़ाम हो जाये,लेकिन होली के हुड़दंगियों को परिचित-अपरिचित,दुःखी या उदास चेहरों से कोई मतलब नहीं था। उन्हें जहाँ कोई बिना रंग लगा दिखा,उसे तबियत से रगड़-रगड़ कर पूरा रंग में रंग डालते और रंग से भरे कढ़ाव में डालकर ही चैन मिलता है।
रमेश के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। लोगों ने उसे भी पकड़कर पूरा रगड़-रगड़ कर रंग डाला और आख़िरी में रंग के कढ़ाव में डुबोकर ही उन्हें चैन मिला,लेकिन ये कैसा रंग था परमेश्वर,
शरीर रंग में पूरा भीग चुका था और उसका मन बिल्कुल बेरंग…।
वह रंग में पूरा भीगा हुआ भावनाहीन उठकर चल दिया अपने परिचित के घर की ओर इस आशा से कि शायद कुछ पैसों का इंतज़ाम हो जाए।

परिचय-सुरेन्द्र सिंह राजपूत का साहित्यिक उपनाम ‘हमसफ़र’ है। २६ सितम्बर १९६४ को सीहोर (मध्यप्रदेश) में आपका जन्म हुआ है। वर्तमान में मक्सी रोड देवास (मध्यप्रदेश) स्थित आवास नगर में स्थाई रूप से बसे हुए हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का रखते हैं। मध्यप्रदेश के वासी श्री राजपूत की शिक्षा-बी.कॉम. एवं तकनीकी शिक्षा(आई.टी.आई.) है।कार्यक्षेत्र-शासकीय नौकरी (उज्जैन) है। सामाजिक गतिविधि में देवास में कुछ संस्थाओं में पद का निर्वहन कर रहे हैं। आप राष्ट्र चिन्तन एवं देशहित में काव्य लेखन सहित महाविद्यालय में विद्यार्थियों को सद्कार्यों के लिए प्रेरित-उत्साहित करते हैं। लेखन विधा-व्यंग्य,गीत,लेख,मुक्तक तथा लघुकथा है। १० साझा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है तो अनेक रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में भी जारी है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अनेक साहित्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। इसमें मुख्य-डॉ.कविता किरण सम्मान-२०१६, ‘आगमन’ सम्मान-२०१५,स्वतंत्र सम्मान-२०१७ और साहित्य सृजन सम्मान-२०१८( नेपाल)हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्य लेखन से प्राप्त अनेक सम्मान,आकाशवाणी इन्दौर पर रचना पाठ व न्यूज़ चैनल पर प्रसारित ‘कवि दरबार’ में प्रस्तुति है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और राष्ट्र की प्रगति यानि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त,सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एवं कवि गोपालदास ‘नीरज’ हैं। प्रेरणा पुंज-सर्वप्रथम माँ वीणा वादिनी की कृपा और डॉ.कविता किरण,शशिकान्त यादव सहित अनेक क़लमकार हैं। विशेषज्ञता-सरल,सहज राष्ट्र के लिए समर्पित और अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिये जुनूनी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“माँ और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती है,हमें अपनी मातृभाषा हिन्दी और मातृभूमि भारत के लिए तन-मन-धन से सपर्पित रहना चाहिए।”

Leave a Reply