दूर करें तम

तारा प्रजापत ‘प्रीत’ रातानाड़ा(राजस्थान)  ************************************************* अंतर्मन से दूर करें तम, खुशहाली का हो आगमन। चहुँओर उजियारा बरसे, कोई कहीं उदास न तरसे। देकर खुशियाँ ले ले ग़म, अंतर्मन से दूर…

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औरत

तारा प्रजापत ‘प्रीत’ रातानाड़ा(राजस्थान)  ************************************************* औरत का दर्द न औरत समझे, पुरुष भला क्या समझेगा ? औरत ने औरत को सताया, ताने मारे दिल को दुखाया, बन कर सास बहू…

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जीवन

तारा प्रजापत ‘प्रीत’ रातानाड़ा(राजस्थान)  ************************************************* उदास क्यों हो ? क्यों ठंडी आहें भरते हो ? निराशा ने क्यों, तुमको पकड़ा है ? मजबूरियों ने क्यों, तुमको जकड़ा है ? वक़्त…

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ख़्याल

तारा प्रजापत ‘प्रीत’ रातानाड़ा(राजस्थान)  ************************************************* धुँधलका शाम का गहराने लगा, आँच सूरज की मंद पड़ने लगी, शाम ने धीरे से करवट बदली, सोये अरमान फिर, मचलने लगे। खुल के बिखरे…

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परिचय

तारा प्रजापत ‘प्रीत’ रातानाड़ा(राजस्थान)  ************************************************* किसका परिचय ? कैसा परिचय ? चन्द शब्दों की परिधि में, नहीं बांध सकोगे तुम मुझको। क्या जानते हो तुम मेरे बारे में ? और,…

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विरह

तारा प्रजापत ‘प्रीत’ रातानाड़ा(राजस्थान)  ************************************************* कैसे जाऊं भरने गागर, मन की गगरी रीती है। विरह अग्न में विरहन को, पल लगे सदियां बीती है। झर गये पत्ते आशाओं के, सूखा…

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सावन

तारा प्रजापत ‘प्रीत’ रातानाड़ा(राजस्थान)  ************************************************* उमड़-घुमड़ जब आता सावन। हृदयतल प्यास जगाता सावन। गरजते बादल,चमकती बिजली, पिया बिन नहीं,लुभाता सावन। नाचे मोर,अरु पपीहा बोले, राग मल्हार सुनाता सावन। लहर-लहर लहराये…

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२८ को सम्मान समारोह एवं ‘प्रीत’ की पुस्तक का विमोचन

जयपुर(राजस्थान)। श्री जागृति संस्थान २८ जुलाई २०१९ की शाम साढ़े ४ बजे डॉ. मदन डागा साहित्य भवन (एसी. हॉल) में वार्षिक सम्मान समारोह और लेखिका तारा प्रजापत 'प्रीत' की दूसरी…

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बंजारे-सी रातें

तारा प्रजापत ‘प्रीत’ रातानाड़ा(राजस्थान)  ************************************************* वक़्त के दामन से कुछ लम्हें चुरा कर, मैंने आज सोचा चलो इन लम्हों में ढूँढते हैं अपने खोये हुए दिन, गुज़री हुई रातें। वो…

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शाम

तारा प्रजापत ‘प्रीत’ रातानाड़ा(राजस्थान)  ************************************************* दूर क्षितिज पे, लगे यूँ ऐसे ढलती शाम का ढलता सूरज है अधीर, धरती से मिलने। आसमां की छटा निराली, कुछ उजली कुछ काली-काली, चारों…

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