मैं धरा
विजयसिंह चौहान इन्दौर(मध्यप्रदेश) ****************************************************** एक लंबे समय से मैं धरा तुम सब जीव-जंतु,प्रकृति,पर्यावरण को अपने में समाहित किए मजे से जी रही हूँ। प्यारे-प्यारे मनुष्य,सुंदर फल-फूल,कल-कल संगीत सुनाती नदियां,विशाल पठार और कोमल दूब क्या नहीं संजोया मैंने अपने दामन में,सिर्फ तुम्हारे लिए! सोना-चांदी,कोयला-कथीर,खट्टे-मीठे और कड़वा स्वाद तक समेटा है,मैंने अपनी बगिया में। तुमने जैसा बीज … Read more