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किताब…बेशकीमती नगीने

ममता तिवारी
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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ये किताबों में अक्षरों का समूह,
गूंथे हुए मोतियों की माला या बेशकीमती नगीने हैं।
अनिर्मित पथ की निर्मित पथिक,
जिज्ञासा धर्म काम मोक्ष सर्वस्त्र,छिपे किताबों के सीने है॥

ज्ञान पिपासु किताब सिंधु उतर,
किताबों को बना निर्मल नीर आँखो पियो,जिसे पीने है।
शून्य से असंख्य कल्पना लोक,
विरक्त आसक्त बद्ध व मुक्त,पन्नों-पन्नों में ही जीने हैं॥

मुखर है कभी मौन नहीं किताब,
अपठित आलोकित पंक्तियां,पठन प्रतीक्षा दिन गिने है।
वापस आओ किताबें बुलाती है,
कीमत कद्र तो क़द्रजान जाने,खोला देखा मुझे सभी ने है॥

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