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मंज़र नहीं देखा गया

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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आ गया वो रूह में मंज़र नहीं देखा गया।
पूजते पत्थर रहे अंदर नहीं देखा गया।

आत्म मंथन के सफ़र में देह से ऊपर उठा,
पार गरदन के गया तो सर नहीं देखा गया।

देह में वो साथ था पर हम ही लापरवाह थे,
जाम पीते रह गए,रहबर नहीं देखा गया।

छोड़ कर भागा हमें तो लुट गयी आवारगी,
चार कांधे ले चले फिर घर नहीं देखा गया।

फूल माटी में मिला तो देखकर वो रो पड़े,
बागबां के हाथ में खंजर नहीं देखा गया।

देखते ही देखते जब कारवां धूमिल हुआ,
धूप गायब हो गयी छप्पर नहीं देखा गया।

बात आयी देश के सम्मान की तो चल पड़े,
राष्ट्र ही मजहब हुआ तो डर नहीं देखा गया।

मंच पर कविता नहीं जब गीत पैरोडी मिली,
इस तरह के मंच पे ‘हलधर’ नहीं देखा गया॥

परिचय-जसवीर सिंह का साहित्यिक नाम ‘हलधर’ है। १ जनवरी १९६७ को गहना (जिला बुलंद शहर,उत्तर प्रदेश)में जन्मे और वर्तमान निवास देहरादून (उत्तराखंड)में है। शिक्षा -बी.एस-सी.(कृषि-ऑनर्स) व एम.ए.(समाज शास्त्र)है। भारतीय जीवन बीमा निगम में कार्यरत श्री सिंह की प्रकाशित पुस्तकें-शंखनाद,अंतर्नाद व वतन के रखवाले(सांझा संग्रह) आदि है। आपको राष्ट्रीय कवि संगम,हिंदी समिति,ओएनजीसी सहित शिखर सम्मान(पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी,मेघालय),छंद शिरोमणी,साहित्यश्री एवं राष्ट्रीय गौरव सम्मान से भी सम्मानित किया गया है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन हुआ है तो टी.वी.चैनलों-मंचों पर कविता पाठ भी किया है।

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