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ह़सीं ‘गुलाब’ है तू

सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
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इक शगुफ़्ता ह़सीं ‘गुलाब’ है तू।
मेरी ‘आँखों का इन्तेख़ाब है तू।

जिसका हर ह़र्फ़ ह़र्फ़े उल्फ़त है,
जानेमन ‘वो खुली किताब है तू।

फूल,कलियों में,चाँद,तारों में,
यह ‘ही सच है के’ लाजवाब है तू।

जिससे ‘रोशन है अन्जुमन शब की,
ह़ुसने अन्जुम ‘वो माहताब’ है तू।

अपनी ‘नाज़ ओ अदा ‘के सदक़े ही,
सारे आ़लम में कामयाब है तू।

चारागर है तू साक़िया ‘ग़म का,
कौन कहता है के ‘ख़राब है तू।

उसकी क़िस्मत ‘फ़राज़’ क्या कहना,
जिसको आलम में दस्तियाब है तू॥

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