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चढ़ चेतक रणबाँकुरा

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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‘महाराणा प्रताप और शौर्य’ स्पर्धा विशेष……….


अमर वीर गाथा वतन,चित्तौड़ी सन्तान।
महाराणा प्रताप थे,गौरव यश वरदान॥

भारत माँ प्रिय लाड़ला,आज़ादी सरताज़।
लड़ा मुगलिया सल्तनत,महायुद्ध आगाज़॥

तजा राज वन वन फिरा,भोजन रोटी घास।
तन मन धन माँ भारती,शत्रु दमन विश्वास॥

महाबली गंभीर वह,महायोध रणधीर।
चढ़ चेतक रणबाँकुरा,आकुल भारत वीर॥

नद निर्झर अरु सिन्धु सम,आँधी सम गतिशील।
अविचल निर्भय सत्पथी,साथ खड़ा सब भील॥

बालसखा भीमा समा,देशभक्त था साथ।
भामा शाह प्रताप को,दिया शक्ति धन हाथ॥

राष्ट्रभक्ति अनुरक्ति तनु,देशप्रेम आवृत्त।
मातृभूभि अर्पण स्वयं,था प्रताप नित चित्त॥

महाकाल विकराल था,शत्रुंजय सम पार्थ।
हल्दी घाटी हार कर,जीया वन परमार्थ॥

रुका झुका टूटा नहीं,दुर्गम संकट काल।
थर्रायी मुगली ताकतें,अकबर बल बेहाल॥

जीवन भर लड़ता रहा,यवन पतन नित ध्येय।
मातृभूमि स्वाधीनता,प्रण प्रताप मन गेय॥

राष्ट्र आन सम्मान ही,रक्षण था संकल्प।
पराधीन जीवन नरक,राणा बना विकल्प॥

गूंजा था मेवाड़ तब,भारत माँ जयगान।
मुगलों से अपने मिले,मान दान शैतान॥

सम्प्रभुता निज देश की,शान्ति सुखद अनुभूति।
अमरपूत रक्षण वतन,दी प्रताप आहूति॥

देवपुत्र क्षत्रिय प्रबल,रणकौशल प्रतिमान।
प्रथम पुरोधा क्रान्ति का,आजादी वरदान॥

ऋणी आज पूरा वतन,नतमस्तक अविराम।
अमरगीत माँ भारती,गा प्रताप अभिराम॥

ले ‘निकुंज’ सादर नमन,हे प्रताप अभिमान।
युवप्रेरक बन युगों तक,अमर भरत संतान॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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