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अवसरवाद पर घातक प्रहार का अचूक आयुध आका बदल रहे हैं

अवधेश कुमार ‘अवध’
मेघालय
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वैश्विक संस्कृतियों के घालमेल ने उपभोक्तावाद के चंगुल में मानवतावाद को तड़पने के लिए सौंप दिया है। अवसरवाद को कौशल के रूप में परिभाषित किया जाने लगा है। मानव और पशुओं में फर्क मात्र शारीरिक संरचना में रह गया है। ऐसे में लेखनी द्वारा विद्रोह होना स्वाभाविक और आवश्यक भी है।
भारत में क्रान्ति का अग्रदूत सदैव गुजरात रहा है,चाहे क्रान्ति किसी भी संदर्भ में हो। भारतीय समाज में मानवीय मूल्यों के उत्तरोत्तर पतन ने अहमदाबाद(गुजरात) के ग़ज़लकार विजय तिवारी के मानस को झकझोर कर रख दिया। हाथों में लेखनी गहकर श्री तिवारी ने १२१ पृष्ठीय ‘आका बदल रहे हैं’ रच डाला। इसके २ आशय निकाले जा सकते हैं। एक अर्थ यह कि,हम अपनी जरूरतों के अनुसार अपने आका बदल रहे हैं और दूसरा यह कि समय के सापेक्ष आका खुद को बदल रहे हैं। इन दोनों ही अर्थों में अवसरवाद की सड़ांध है। कलमकार ने बहुचर्चित ग़ज़ल विधा का चयन किया है। विजय तिवारी ने इसे व्यापक बनाते हुए समाज के हर मुद्दे से जोड़ दिया।
आका बदल रहे हैं का रचनाकार कभी जर्जर व्यवस्था पर चोट करता है,तो कभी असम्भव को सम्भव बनाने की कागजी नीति पर व्यंग्य करता है। भारतीय संस्कार के वशीभूत माँ से सर्व मंगल हेतु विनय करता है तो खोटी नीयत पर भरपूर प्रहार भी। रामराज्य की संकल्पना का भूतलीकरण करने हेतु बेचैन भी हो जाता है। ग़ज़ल में इश्क की चर्चा स्वाभाविक है,किन्तु ग़ज़लकार ने इसे मात्र एक औपचारिकता मानकर निभाया है। मूल विषय प्यार से आगे बढ़कर जीवन की चुनौतियों से दो-दो हाथ करना है।
अत्यन्त मनोरम मुख पृष्ठ से सुसज्जित यह द्वितीय संस्करण बरबस ही चित्ताकर्षण करने में समर्थ है। विषय की विविधता से रोचकता सदैव कायम है। उर्दू के मोह से शायर अनुरक्त नहीं है। यदा-कदा आवश्यकतानुसार सामान्य बोलचाल के शब्द स्वत: आकर यथास्थान व्यवस्थित हो गए हैं। चमत्कार के चक्कर में दुरूह बनाने की बीमारी से रचनाकार पूर्णत: मुक्त है।
माँ की वंदना से आगे बढ़ती हुई पुस्तक इश्क के समंदर में गोते खाती हुई युवा पीढ़ी का आह्वान करती है। रामराज्य का आह्वान करती है और फिर जीवन की न केवल प्राकृतिक बल्कि मानव निर्मित विषमताओं (कैक्टस) को ललकारती हुई सर्वे भवन्तु सुखिन: के सुखद स्वप्न को साकार करने हेतु कर्मभूमि में उतर जाती है। परिवर्तन की आस और आत्मनिर्भरता के लिए युवा पीढ़ी का आह्वान करता है शायर-
बागडोर अब देश की तू थाम ले ऐ नौजवां, बूढ़ी उंगली को पकड़कर तू चलेगा कब तलक। मार पंजा शेर सा भाषा यही समझेगा वो, भैंस के आगे यूँ ही गीता पढ़ेगा कब तलक।
शीर्षक को सार्थकता प्रदान करने का हुनर इस शायर की विशेषता है। व्यंग्य और सीख से चोली और दामन-सा साहचर्य बनाये हुए हैं। हर व्यंग्य का उद्देश्य सीख है। ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ और देश-दुनिया से बेखबर रहने को चरितार्थ करती हुई पंक्तियाँ देखें-
फिर इक सुहाना सपना हमको दिखा रहे हैं, सुई की नोंक पर वो हाथी बैठा रहे हैं। जीवन के खंडहरों की ईटें गिर रही हैं, ऐसे समय में भी वो मल्हार गा रहे हैं।
समय की नब्ज को टटोले बिना कोई कलमकार टिकाऊ नहीं हो सकता। ‘आका बदल रहे हैं’ के रचनाकार श्री तिवारी एक सुलझे हुए आक्रामक कलमकार हैं। कब और कहाँ,कितनी चोट करनी है जिससे परिस्थिति को सुगमता और सहजता से अपने अनुकूल बनाया जा सके,ठीक से आता है। वर्तमान परिवेश को समझने और व्यंग्य में निहित सीख को आत्मसात कर अमलीजामा पहनाने से नि:संदेह ही समाज को उचित दिशा मिलेगी। पाठकों के दिल के किसी कोने में स्थान पाना ही इस कृति का लक्ष्य है। आशा ही नहीं,वरन पूर्ण विश्वास है कि प्रबुद्ध पाठक सुखद सानिध्य का सुअवसर अवश्य देंगे।

परिचय-अवधेश कुमार विक्रम शाह का साहित्यिक नाम ‘अवध’ है। आपका स्थाई पता मैढ़ी,चन्दौली(उत्तर प्रदेश) है, परंतु कार्यक्षेत्र की वजह से गुवाहाटी (असम)में हैं। जन्मतिथि पन्द्रह जनवरी सन् उन्नीस सौ चौहत्तर है। आपके आदर्श -संत कबीर,दिनकर व निराला हैं। स्नातकोत्तर (हिन्दी व अर्थशास्त्र),बी. एड.,बी.टेक (सिविल),पत्रकारिता व विद्युत में डिप्लोमा की शिक्षा प्राप्त श्री शाह का मेघालय में व्यवसाय (सिविल अभियंता)है। रचनात्मकता की दृष्टि से ऑल इंडिया रेडियो पर काव्य पाठ व परिचर्चा का प्रसारण,दूरदर्शन वाराणसी पर काव्य पाठ,दूरदर्शन गुवाहाटी पर साक्षात्कार-काव्यपाठ आपके खाते में उपलब्धि है। आप कई साहित्यिक संस्थाओं के सदस्य,प्रभारी और अध्यक्ष के साथ ही सामाजिक मीडिया में समूहों के संचालक भी हैं। संपादन में साहित्य धरोहर,सावन के झूले एवं कुंज निनाद आदि में आपका योगदान है। आपने समीक्षा(श्रद्धार्घ,अमर्त्य,दीपिका एक कशिश आदि) की है तो साक्षात्कार( श्रीमती वाणी बरठाकुर ‘विभा’ एवं सुश्री शैल श्लेषा द्वारा)भी दिए हैं। शोध परक लेख लिखे हैं तो साझा संग्रह(कवियों की मधुशाला,नूर ए ग़ज़ल,सखी साहित्य आदि) भी आए हैं। अभी एक संग्रह प्रकाशनाधीन है। लेखनी के लिए आपको विभिन्न साहित्य संस्थानों द्वारा सम्मानित-पुरस्कृत किया गया है। इसी कड़ी में विविध पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत प्रकाशन जारी है। अवधेश जी की सृजन विधा-गद्य व काव्य की समस्त प्रचलित विधाएं हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा एवं साहित्य के प्रति जनमानस में अनुराग व सम्मान जगाना तथा पूर्वोत्तर व दक्षिण भारत में हिन्दी को सम्पर्क भाषा से जनभाषा बनाना है। 

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