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अंतरात्मा की आवाज

विजय कुमार,
अम्बाला (हरियाणा)
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‘दादू,क्या यह सच है कि आप पहले सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी किया करते थे ?’ चौदह साल के पोते ने कुलदीप से सवाल किया।
‘हाँ बेटा,पर तुम्हें किसने कहा ?’ कुलदीप ने पूछा।
‘मम्मी ने।’ पोते ने कहा।
‘और क्या बताया तेरी मम्मी ने ?’ कुलदीप ने कुरेदा।
‘यही कि आपको एक बार अपनी ड्यूटी करते हुए ढेर सारे रुपए मिले थे,तो आपने उन्हें ईमानदारी से जिसके थे,उसे लौटा दिए थे।’ पोता बोला।
‘हाँ,और एक बार नहीं बेटा,दो बार पहले भी ऐसा ही हुआ था। तब भी मैंने रुपए लौटा दिए थे। कई बार तो कईयों का कीमती सामान भी छूट गया था,जो मैंने लौटा दिया था।’ कुलदीप ने पोते को बताया।
‘दादू,आपने अपने पास क्यों नहीं रखा ?’ पोते ने पूछा।
‘नहीं बेटा,वह किसी और की अमानत थी, अपना सामान थोड़े था। पता नहीं क्या था, और कैसे-कैसे करके किसी ने बनाया या इकट्ठा किया होगा ? हम भी तो कभी कोई चीज़ लेते हैं,तो कितना सोच-विचार कर, कितनी सिर खपाई करके लेते हैं न। फिर पैसे भी तो खर्च होते हैं। और फिर अगर हमारी वही चीज गुम हो जाए,तो हमें कितना दु:ख होता है ?’
कुलदीप पोते को समझाते हुए बोला,-‘वह पिछले साल तुम्हारी पसंदीदा साइकिल गुम हो गई थी,तो तुम कितना रोए थे और तुम्हें कितना दु:ख हुआ था ?’
‘हाँ,पर जब मिल गई थी,तो उससे भी ज्यादा खुश हुआ था।’ पोते के चेहरे पर खुशी के भाव आ गए।
‘हाँ,तो सोचो बेटा,जिनकी चीजें मैंने वापस की थीं,उनको कितनी खुशी मिली होगी। उन्होंने तो मुझे नगद इनाम देने की भी कोशिश की थी,पर मैंने नहीं लिए। मेरे लिए उनकी ख़ुशी ही सबसे बड़ा ईनाम था। मुझे इतना ही बहुत था कि मैं किसी के काम आया।’ कुलदीप उस सुखद एहसास में फिर से डूब गया।
‘और दादू,मम्मी यह भी कह रही थीं कि
आपकी इमानदारी से खुश होकर किसी बहुत बड़े अफसर ने आपको भी अफसर बना दिया था। क्या यह सच है ?’ पोते ने पूछा।
‘हाँ बेटा,बिल्कुल सही बताया उसने तुझे।’, कुलदीप हँस कर बोला,-जब मैंने वे रुपए लौटाए थे,तो मेरे बड़े अफसर ने मेरी ईमानदारी से खुश हो कर और मेरा पिछला रिकॉर्ड देख कर मुझे असिस्टेंट सिक्योरिटी अफसर की पोस्ट दिलवा दी। मैं आज भी उनका आभारी हूँ,जिन्होंने मेरी ईमानदारी का फल मुझे दिया, और दूसरों के लिए भी एक मिसाल कायम कर दी।’
‘और अगर वह आपको अफसर न बनाते तो ?’ पोते का सवाल था।
कुलदीप ने दृढ़ता से कहा,-‘तो भी मैं अपना काम उसी ईमानदारी से करता रहता,जैसे पहले कर रहा था,और बाद में भी करता रहा था। ईमानदारी से काम करना मेरी कोई मजबूरी नहीं थी बेटा,मेरी अपनी अंतरात्मा की आवाज थी…।’

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