डॉ.विजय कुमार ‘पुरी’
कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)
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बड़ा है फैला कोरोना का कहर,
बन्द हो गये ये गाँव गली शहर।
घर रहने को न समझो मजबूरी,
हों काबू हालात,है तभी जरूरी।
सेवारत हो लगे हुए हैं हमें बचाने,
हूँ नतमस्तक धन्य हैं वे अवतारी।
रात दोपहर सुबह शाम वे बिना थके,
हाथ जोड़ समझाते सब अधिकारी।
हैं माँ-बाप,उनके भी घर और सन्तानें,
भूल गए हैं अपने नाते,वे नर नारी।
कुछ धूर्त खुद को समझें तीसमार खां,
बेफिजूल लगते उनको ऑर्डर सरकारी,
राशन,सब्जी,साबुन,दालें,खाना पानी,
दिखते हैं देते देते समाजसेवी व वर्दीधारी।
जीवन है तो सब कुछ होएगा धीरे-धीरे,
हमको कदम उठाने हैं,न फैले ये महामारी॥
परिचय-डॉ. विजय कुमार का साहित्यिक उपनाम ‘पुरी’ है। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के ग्राम पदरा (तहसील पालमपुर)में स्थाई रुप से बसे हुए डॉ. कुमार का जन्म जिला कांगड़ा के पालमपुर में १२ अक्टूबर १९७३ को हुआ। आपको हिंदी,अंग्रेजी,हिमाचली पहाड़ी भाषा का ज्ञान है। पर्यटन के धनी राज्य हिमाचल वासी ‘पुरी’ की पूर्ण शिक्षा पी.एच-डी.,एम.फिल. एवं नेट,स्लेट,बीएड है। पेशे से प्राथमिक शिक्षक हैं। सामाजिक गतिविधि में संस्था के पदाधिकारी हैं। लेखन विधा-गीत,कविता,कहानी एवं समीक्षा है। ‘पहचान’ काव्य संग्रह सहित ‘मालती जोशी के कथा साहित्य में मध्यवर्गीय चेतना’ समीक्षात्मक पुस्तक प्रकाशित है तो ‘कांगड़ा के लोकगीत-जीवनशैली एवं रीति-रिवाज’ अनुसंधानात्मक पुस्तक का सम्पादन आपके नाम है। आप २ हिंदी पत्रिका का सम्पादन भी देखते हैं। इनकी रचनाएं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपके साहित्यिक खाते में-राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान (हिमाचल सरकार- २०१९),अकादमी अवार्ड (जालंधर) एवं ‘साहित्यश्री सम्मान’ आदि हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-समाज सापेक्ष रचनाकर्म है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-तुलसीदास,मैथिली शरण गुप्त हैं,तो प्रेरणापुंज-माता-पिता हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“अपने ही घर में हारती,ये हिन्दी क्यों लाचार है।
यह भाषागत नीति नहीं,व्यापार ही व्यापार है॥”