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शहर सोता है…

क्षितिज जैन
जयपुर(राजस्थान)
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गली-चौराहों में यह सन्नाटा हुआ पसरा,
न कोई गतिविधि,और न कोई भी त्वरा।

कोलाहल भरी सड़कों पर,नया मौन होता है,
देख लेखनी! मेरा शहर बंद घरों में सोता है।

जन संकुलता में भी नीरवता की यह छाया,
सूने पड़े उन बाज़ारों में,नज़र कोई न आया।

बंद कर इन कारखाने,बंद कर मशीनी काम,
प्रकृति कर रही है मानो,अब किंचित विश्राम।
और इस मौन में हम,डाल गलतियों पर नज़र,
अब चाह रहे हैं बदलना,समस्त नीतियों की डगर।

शहर का यह सन्नाटा,मानवता का एकांतवास,
जहां ले रही सभ्यता,बंद दरवाजों में साँस।

कर के प्रकृति ने हमें एक-दूसरे से अब ऐसे दूर,
अपने अपराधों पर,सोचने को किया मजबूर।

अपनी रौनक व शोभा,पर लगाकर ये विराम,
मेरा शहर देख रहा,अविवेक का ही परिणाम।
लेकिन यह सन्नाटा,घरों में न पहुँच पाता है,
प्रत्येक व्यक्ति समय,अपनों संग बिताता है।

छोटे-छोटे कामों में,बंटाकर सब लोग हाथ,
इन कुछ दिनों के लिए,सुखी हो रहते हैं साथ।
अपनत्व अपनाने से,हर्ष भी बहुत होता है,
देख लेखनी! मेरा शहर बंद घरों में सोता है॥

परिचय-क्षितिज जैन का निवास जयपुर(राजस्थान)में है। जन्म तारीख १५ फरवरी २००३ एवं जन्म स्थान- जयपुर है। स्थायी पता भी यही है। भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखते हैं। राजस्थान वासी श्री जैन फिलहाल कक्षा ग्यारहवीं में अध्ययनरत हैं कार्यक्षेत्र-विद्यार्थी का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत धार्मिक आयोजनों में सक्रियता से भाग लेने के साथ ही कार्यक्रमों का आयोजन तथा विद्यालय की ओर से अनेक गतिविधियों में भाग लेते हैं। लेखन विधा-कविता,लेख और उपन्यास है। प्रकाशन के अंतर्गत ‘जीवन पथ’ एवं ‘क्षितिजारूण’ २ पुस्तकें प्रकाशित हैं। दैनिक अखबारों में कविताओं का प्रकाशन हो चुका है तो ‘कौटिल्य’ उपन्यास भी प्रकाशित है। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। विशेष उपलब्धि- आकाशवाणी(माउंट आबू) एवं एक साप्ताहिक पत्रिका में भेंट वार्ता प्रसारित होना है। क्षितिज जैन की लेखनी का उद्देश्य-भारतीय संस्कृति का पुनरूत्थान,भारत की कीर्ति एवं गौरव को पुनर्स्थापित करना तथा जैन धर्म की सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-नरेंद्र कोहली,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं। इनके लिए प्रेरणा पुंज- गांधीजी,स्वामी विवेकानंद,लोकमान्य तिलक एवं हुकुमचंद भारिल्ल हैं। इनकी विशेषज्ञता-हिन्दी-संस्कृत भाषा का और इतिहास व जैन दर्शन का ज्ञान है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपका विचार-हम सौभाग्यशाली हैं जो हमने भारत की पावन भूमि में जन्म लिया है। देश की सेवा करना सभी का कर्त्तव्य है। हिंदीभाषा भारत की शिराओं में रक्त के समान बहती है। भारत के प्राण हिन्दी में बसते हैं,हमें इसका प्रचार-प्रसार करना चाहिए।

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