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नेपाल की अनावश्यक आक्रामकता

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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लद्दाख के सीमांत पर भारत और चीन की फौजें अब मुठभेड़ की मुद्रा में नहीं हैं। पिछले दिनों ५-६ मई को दोनों देशों की फौजी टुकड़ियों में जो छोटी-मोटी झड़पें हुई थीं,उन्होंने चीनी और भारतीय मीडिया के कान खड़े कर दिए थे।दोनों तरफ के कुछ सेवा-निवृत्त फौजियों और पत्रकारों ने ऐसा माहौल बना दिया था,जैसे कि भारत और चीन में कोई बड़ी मुठभेड़ होने वाली है। इस मुठभेड़ के साथ नेपाल को भी जोड़ दिया गया। भारत-नेपाल सीमा विवाद को लेकर कई अतिवादी तेवर सामने आ गए। इस तिकोनी लड़ाई को भारत सरकार ने जिस परिपक्वता के साथ सम्हाला,वह सराहनीय है। भारतीय रक्षामंत्री और गृहमंत्री ने दृढ़ता तो दिखाई,लेकिन अपनी सीमा-रक्षा को लेकर कोई उत्तेजक बयान नहीं दिया। अब दोनों देशों के फौजी अफसरों की बातचीत से तनाव काफी घट गया है। जिन तीन स्थानों से दोनों देशों ने अपनी फौजें २-३ कि.मी. पीछे हटा ली हैं,वे हैं-पेट्रोल पाइंट,१४,१५,१७ जिन दो स्थानों पर अभी चर्चा होनी है,वे हैं-पेंगांग त्सो और चुशूल! इन दो स्थानों पर भी आशा है कि,आपसी समझ तैयार हो जाएगी। भारत चाहता है कि अप्रैल माह में जो स्थिति थी, फौजें,उसी पर लौट जाएं। जैसा शुरु से अंदाज था कि दोनों देश इस कोरोना संकट के दौरान कोई नया सिरदर्द मोल लेने की स्थिति में नहीं है लेकिन नेपाल की स्थिति कुछ अलग ही है। वहां की आतंरिक राजनीति इतनी विकट है कि उसके प्रधानमंत्री के.पी. ओली ने मजबूर होकर भारत के विरुद्ध कूटनीतिक युद्ध की घोषणा कर दी है। उन्हें अपनी पार्टी में अपने विरोधियों का मुँह बंद करने के लिए भारत-विरोध का सहारा लेना पड़ रहा है। उन्होंने सुगौली संधि (१८१६) की पुनर्व्याख्या करते हुए भारत-नेपाल का एक नया नक्शा घड़ लिया है,जिसे वह अपनी संसद से पास करा लेंगे। इस नक्शे में कालापानी,लिपुलेख और लिंपियाधूरा के क्षेत्रों को वह नेपाली सीमा में दिखा रहे हैं। उनसे कोई पूछे कि इस संवैधानिक संशोधन का महत्व क्या है ? ऐसा करने से क्या २०० साल से चले आ रहे तथ्य उलट जाएंगे ? भारत तश्तरी में रखकर ये क्षेत्र नेपाल को भेंट कर देगा क्या ? क्या नेपाल के पास इतनी ताकत है कि,वह इस क्षेत्र पर अपना फौजी कब्जा जमा लेगा ? यह ठीक है कि भारत ने इस मुद्दे पर बातचीत में बहुत देर लगा दी है लेकिन बातचीत शुरु करवाने के लिए यह संवैधानिक दबाव बनाना क्या मच्छर मारने के लिए पिस्तौल चलाने-जैसा अतिवाद नहीं है ? यह कदम उठाकर ओली सरकार नेपाली जनता की नज़र में हास्यास्पद बने बिना नहीं रहेगी। नेपाल की यह आक्रामकता अनावश्यक है।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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