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‘अनसुलझे जीवन-सूत्र ‘

डॉ. रीता कुमारी ‘गामी’
मधुबनी (बिहार)
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सामाजिक सम्बन्ध और दूरी स्पर्धा विशेष………..

              शाम का वक़्त,बाज़ार की गहमागहमी के बीच दो पुराने दोस्त अनायास एक-दूसरे से मिल जाते हैं। धौल-धप्पे और हँसी-ठठे के साथ-साथ  बातों का सिलसिला शुरू हो जाता है।
इसी बीच; “राजन,जरा उधर देखो तो…उस सब्जी वाले की दुकान पर जो शख़्स खड़ा है,हमारे मैथ टीचर जैसा दिखता है न !” -रौशन ने सब्जी वाले की तरफ इशारा किया।
“दिखते नहीं हैं !…वही हैं।”,राजन ने ध्यान से देखा।
“अरे वाह! कमाल हो गया। आज तो सभी भूले-बिसरे मिल रहे हैं।…क्या कहते हो मिला जाए ?”
 “तुम भी ना!…नवीं-दसवीं की बात अलग थी… हाथ जोड़ो,पैर छुओ के पचड़े में अभी पड़े तो शाम निकल जाएगी।” और दोनों दोस्त गप्पे मारते बगल से निकल गये।
“वैसे,मैथ के मँजे हुए खिलाड़ी हैं मिश्रा सर।”
“स्कूल में पढा़ए इनके ट्रिक्स और सूत्र आज भी हमारे काम आ रहे हैं।”
“एक-एक सूत्र कमाल का! मैथ को भी कोई मजाकिया ढंग से पढ़ाता है भला!…छात्रों के लिए कभी ‘हव्वा’ नहीं बनने दिया मैथ को।”
                सब्जी वाले को पैसे देकर मिश्रा सर दूसरी ओर चल पड़े।अकेले नहीं,अपने विचारों के साथ-साथ।
“यदि थोड़ा-सा समय निकालकर छात्रों को किताबों के साथ-साथ जीवन को पढ़ना भी सिखा देता, जीवन-सूत्रों को सुलझाना सिखा देता…काश! बड़ी- बड़ी सोच के साथ-साथ,उन्हें छोटे-छोटे पलों को भी जीना सिखा पाता…कुछ अनसुलझे सूत्र रह गए, जिन्हें सरल समझकर,सुलझाने की कभी कोशिश ही नहीं की!”
सोच-सोचकर उनका मन भारी हो रहा था। मौका पाकर हाथों ने अपना बोझ मस्तिष्क पर डाल दिया था।
परिचय-डॉ. रीता कुमारी का साहित्यिक उपनाम ‘गामी’ है। आपका वर्तमान पता घोघरडीहा एवं स्थाई निवास जिला-मधुबनी (बिहार) में है। १८ फरवरी १९८३ को जन्मी रीता कुमारी को हिन्दी,मैथिली,अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। आपकी शिक्षा-नेट,पी-एच.डी.(हिन्दी),बी.एड. व एम.ए. (शिक्षा) में है। इनका कार्यक्षेत्र-अध्यापन है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत ग्रामीण छात्राओं को प्रेरित एवं आर्थिक मदद करती हैं। लेखन विधा-कविता,कहानी,लेख है। कई अखबारों में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। डॉ. कुमारी की लेखनी का उद्देश्य-समसामयिक समस्याओं के प्रति लोगों को जागरूक करना है। पसंदीदा लेखक-रामधारी सिंह ‘दिनकर’ एवं प्रेरणापुंज-गुरु डॉ. विनोद कुमार सिंह हैं। आपका जीवन लक्ष्य-स्वयं और समाज को जागरूक करना है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-“देश और हिन्दी यानी ललाट और बिन्दी। दोनों की चमक बनी रहे,इसके लिए हमें समर्पित भाव से सेवा करनी चाहिए ।

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