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हम बिगाड़ें न पर्यावरण

अख्तर अली शाह `अनन्त`
नीमच (मध्यप्रदेश)

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प्रकृति और मानव स्पर्धा विशेष……..

आईये एक कदम हम चलें,
दोस्तों स्वच्छता के लिए।
गंदगी न बढ़ाये कोई,
इस धरा पे खुदा के लिए॥

गंदगी से सना होगा घर,
आग की होंगें हम सब नजर।
भस्म अस्तित्व कर लेंगें हम,
पाल बैठेगें मरने का डर॥
इसलिए राह हम वो चुनें,
काम आए सदा के लिए।
आईये एक कदम हम चलें,
दोस्तों स्वच्छता के लिए॥

जल अगर गंदा हमने किया,
मोल फांसी का फंदा लिया।
रक्त लीवर या किडनी बिना,
जाएगा कैसे हमसे जीया॥
है जरूरी के हो जायें हम,
सख्त हर बेवफा के लिए।
आईये एक कदम हम चलें,
दोस्तों स्वच्छता के लिए॥

शुद्ध वायु से तर जाएंगें,
वरना बेमौत मर जाएंगें।
जो हवा को प्रदूषित किया,
साँसें लेने किघर जाएंगें॥
क्यों जुबां अपनी खुलती नहीं,
जान लेवा हवा के लिए
आईये एक कदम हम चलें,
दोस्तों स्वच्छता के लिए॥

पैसों से आदमी धुल गया,
जब जहर मिट्टी में घुल गया।
साग सब्जी हो या फल कोई,
साथ उसके जहर तुल गया॥
जिन्दगी को बचाना है तो,
हम लड़ें शुद्धता के लिए।
आईये एक कदम हम चलें,
दोस्तों स्वच्छता के लिए॥

हम बिगाड़ें न पर्यावरण,
सब नियंत्रित रखें आचरण।
वरना बदले समय चक्र से,
जान ले लेगा वातावरण॥
गर्मी बढ़ जाएगी चैन हम,
खोएंगें सर्वदा के लिए।
आइए एक कदम हम चलें,
दोस्तों स्वच्छता के लिए॥

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