अंशु प्रजापति
पौड़ी गढ़वाल(उत्तराखण्ड)
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मन के झंझावातों का तुम्हें क्या पता!
बिखरे जज़बातों का तुम्हें क्या पता।
निहारना वो वातायन पहरों,
फ़िर लौटना ख़ाली हाथ
उन लुटते एहसासों का,
तुम्हें क्या पता...।
चौंक उठना ख़ाली रातों में,
चुभते स्वप्नों को छिटकना दूर
पीड़ा को अंदर ही रखना,
उस चुभन का तुम्हें क्या पता…।
चलो माना तन्हा तुम भी हो,
खुदा साथ है तुम्हारे कहते तुम्हीं हो
रूठे ख़ुदा जिन इंसानों से,
उनके ठिकानों का तुम्हें क्या पता...।
किस्सा तो ख़त्म ये होना था,
हो ही गया जो होना था
दो ही तो किरदार थे इसमें,
मेरी तन्हाई का तुम्हें क्या पता…।
हँसना ही हर क्षण ख़ुशी नहीं,
आँसू नहीं कह सकते पीड़ा
टूट जाए जब अंदर सब-कुछ
उन भावों का तुम्हें क्या पता...।
हाँ,है साथ में अब भी बहुत कुछ,
पीड़ा,आँसू और यादें,सब मुझ तक ही रहने देना
तुम तक पहुँचे तो और दुखेंगे,
मेरे इन हिसाबों का तुम्हें क्या पता…।
ऋणी तुम्हारा है मन मेरा,
कितना कुछ तुमने सिखा दिया
तुम तो तैर कर निकल गए
मैं कितना डूबी! तुम्हें क्या पता...।
कोई शब्द नहीं,कोई भाव नहीं,
व्यक्त जो प्रेम को कर दे
सबकी अपनी परिभाषा है,
मेरे अनुभव का तुम्हें क्या पता…।
हर आह हर तन्हाई का,
उत्तर बस ख़ाली-सी स्मित।
व्यंग्य स्वयं पर करता मन प्रति पल,
इस जीवन का तुम्हें क्या पता...??
परिचय-अंशु प्रजापति का बसेरा वर्तमान में उत्तराखंड के कोटद्वार (जिला-पौड़ी गढ़वाल) में है। २५ मार्च १९८० को आगरा में जन्मी अंशु का स्थाई पता कोटद्वार ही है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली अंशु ने बीएससी सहित बीटीसी और एम.ए.(हिंदी)की शिक्षा पाई है। आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन (नौकरी) है। लेखन विधा-लेख तथा कविता है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-शिवानी व महादेवी वर्मा तो प्रेरणापुंज-शिवानी हैं। विशेषज्ञता-कविता रचने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“अपने देेश की संस्कृति व भाषा पर मुझे गर्व है।”