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क्यों यह दहशतगर्जी का खेल…?

देवश्री गोयल
जगदलपुर-बस्तर(छग)
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विश्व शांति दिवस स्पर्धा विशेष……

शायद मैं थोड़ा उद्विग्न हूँ…,
कह सकते हो कि मैं कृतघ्न हूँ।
सिर्फ आह भरकर रह जाती हूँ…,
सिर्फ आँख नम कर लेती हूँ।
जब कायराना हरकत होती है…,
मन ही मन दुःखी होती हूँ।
दर्द का अंदाजा कैसे लगाएं…,
जब हम खुद नींद भर सोएं।
उजड़ी मांगों की दर्दीली कहानी…,
तड़पती माँ के सीने की रवानी।
बिलखते बच्चों के मासूम सवाल…,
बूढ़े बाप के थर्राते कदम निढाल।
जो आत्मघाती होता निकम्मा…,
उससे पूछती होगी उसकी अम्मा॥
क्यों यह दहशतगर्जी का खेल…?
मासूमों की जिंदगी से खेला।
किंतु यह प्रश्न अंतहीन न बने…,
विश्व में दूसरा पाक कहीं न बने।
भारत की धार अभी डरी नहीं है…,
ये कहानी अभी पूरी नहीं है।
जरा याद करो उनकी कुर्बानी…,
तुझे भी कीमत होगी चुकानी।
अपने नाम के आगे सदा…,
के लिए नापाक लगाना होगा…॥

परिचय-श्रीमती देवश्री गोयल २३ अक्टूबर १९६७ को कोलकाता (पश्चिम बंगाल)में जन्मी हैं। वर्तमान में जगदलपुर सनसिटी( बस्तर जिला छतीसगढ़)में निवासरत हैं। हिंदी सहित बंगला भाषा भी जानने वाली श्रीमती देवश्री गोयल की शिक्षा-स्नातकोत्तर(हिंदी, अंग्रेजी,समाजशास्त्र व लोक प्रशासन)है। आप कार्य क्षेत्र में प्रधान अध्यापक होकर सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत अपने कार्यक्षेत्र में ही समाज उत्थान के लिए प्रेरणा देती हैं। लेखन विधा-गद्य,कविता,लेख,हायकू व आलेख है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करना है,क्योंकि यह भाषा व्यक्तित्व और भावना को व्यक्त करने का उत्तम माध्यम है। आपकी रचनाएँ दैनिक समाचार पत्र एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं महादेवी वर्मा हैं,जबकि प्रेरणा पुंज-परिवार और मित्र हैं। देवश्री गोयल की विशेषज्ञता-विचार लिखने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा हमारी आत्मा की भाषा है,और देश के लिए मेरी आत्मा हमेशा जागृत रखूंगी।”

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