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दीए जलाने की प्रेरणा से ‘कोरोना’ मुक्ति का संकल्प

ललित गर्ग
दिल्ली

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘कोरोना’ महामारी के संकट को परास्त करने के लिये हर व्यक्ति को एक-एक दीया जलाने का आव्हान किया है,निश्चित ही इससे प्रकाश की महाशक्ति प्रकट होगी,इससे दो सौ साठ करोड़ मुट्ठियाँ तन जाएंगी और महामारी को मात देने की लड़ाई को बल मिलेगा। भारत के लोगों को अपनी एकजुटता दिखाने के लिए यह एक सार्थक पहल है,जब वे घर की सभी रोशनी बंद करके,दरवाजे या बालकनी में खड़े होकर ९ मिनट के लिए मोमबत्ती,दीया,टॉर्च या मोबाइल की चमकीली रोशनी जलाएंगे।
नरेन्द्र मोदी नेे जनता में फैले कोरोना रूपी अंधकार को मात देने के लिए प्रकाश को माध्यम बनाया है,क्योंकि प्रकाश हमारी सद् प्रवृत्तियों का,सद्ज्ञान का,संवेदना एवं करुणा का,संयम एवं अनुशासन का,प्रेम एवं भाईचारे का,त्याग एवं सहिष्णुता का,सुख और शांति का,ऋद्धि और समृद्धि का,शुभ और लाभ का,श्री और सिद्धि का अर्थात् दैवीय गुणों का प्रतीक है। यही प्रकाश मनुष्य की अंतर्चेतना से जब जागृत होता है,तभी इस धरती पर कोरोना के महासंकट के खिलाफ एक महाशक्ति का प्रस्तुतिकरण होता है। यूरोप और अमेरिका की तुलना में भारत में स्थिति अपेक्षाकृत नियंत्रित है,तो इसलिए कि यहां प्रधानमंत्री ने जनता कर्फ्यू और ‘तालाबंदी’ जैसे जरूरी कदम उठाए एवं सामाजिक स्तर पर लोगों से दूरी बरतने के लिए प्रेरित किया। अब उनका दीए जलाने का आह्वान भी दूरगामी एवं मनोवैज्ञानिक सोच का एक प्रभावी एवं अनूठा उपक्रम है। निश्चित ही यह रोशनी कोरोना महासंकट के समय एकजुट होकर संकट से लड़ने और उस पर विजय पाने का प्रतीक होगी। हालांकि,कुछ धर्म-विशेष एवं नासमझ लोगों की नादानी एवं नासमझी की वजह से संक्रमितों की संख्या में तेजी देखने को मिल रही है,लेकिन मीडिया, चिकित्सकों,पुलिसकर्मियों एवं सफाईकर्मियों की जागरूकता और अपनी जान की परवाह न करते हुए देश के लोगों को इस महामारी से बचाने की जंग से हम दूसरे यूरोपीय देशों से बेहतर है। इसके बावजूद इस महामारी से लड़ने के लिये सजगता,संयम एवं समझ जरूरी है। इस लड़ाई के सेनानियों के प्रति कृतज्ञता और एकजुटता दिखाने की आवश्यकता भी है। हम ही नहीं,दुनिया के अन्य देश भी ऐसी एकजुटता दिखाने के लिए अपने स्तर पर अपनी तरह के प्रयोग कर रहे हैं। इटली के लोगों ने भी राष्ट्रगान एवं लाइटिंग माॅब के सहारे कोरोना से लड़ाई में अपनी एकजुटता प्रदर्शित की थी।
यह बात सच है कि,समूची मानवता इस समय कोरोना के अंधेरे से घिरी है। मनुष्य का रूझान हमेशा प्रकाश की ओर रहा है। कोरोना जैसे अंधेरों को उसने कभी न चाहा, न कभी माँगा। ‘तमसो मा ज्योतिगर्मय’ सम्पूर्ण मानवता की अंतर भावना अथवा प्रार्थना का यह स्वर भी इसका पुष्ट प्रमाण है। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल इस प्रशस्त कामना की पूर्णता हेतु नरेन्द्र मोदी ने दीए जलाने की प्रेरणा देते हुए जरूर सोचा होगा कि वह कौन-सा दीप है जो इस महासंकट से मुक्ति दिलाने एवं मंजिल तक जाने वाले पथ को आलोकित कर सकता है।
शास्त्र में भी कहा गया-‘नाणं पयासयरं’ अर्थात ज्ञान प्रकाशकर है। निश्चित ही दीए जलाने एवं प्रकाश करने का प्रेरक उपक्रम हमारे जीवन में कोरोना से मुक्ति का माध्यम बनेगा,क्योंकि दीया दुर्बलताओं को मिटाकर नई जीवन-शैली की शुरुआत का संकल्प है। यही दीया हमारे जीवन में रोशनी के अलावा हमारे लिए जीवन की सीख भी है,जीवन बचाव का साधन भी है,संयम की प्रेरणा एवं महासंकट से मुक्ति का पथ भी है।
कोरोना के कहर से मानवता चीत्कार उठी है। इस तरह के अंधकार में भटके मानव का क्रंदन सुनकर तो करुणा की देवी का हृदय भी पिघल जाता है। ऐसे समय में मनुष्य को सन्मार्ग दिखा सके,ऐसा प्रकाश स्तंभ चाहिए । इन स्थितियों में हर मानव का यही स्वर होता है कि-प्रभो,हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। कोरोनारूपी संकट से संकटमुक्त जीवन की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो…। इस प्रकार हमें प्रकाश के प्रति,सदाचार के प्रति,अमरत्व के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करते हुए कोरोनामुक्त जीवन जीने का संकल्प करना है। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक अखंड ज्योति जल रही है। उसकी लौ कभी-कभार मद्धिम जरूर हो जाती है,लेकिन बुझती नहीं है। उसका प्रकाश शाश्वत प्रकाश है। वह स्वयं में बहुत अधिक दैदीप्यमान एवं प्रभामय है। हर इंसान को एक दीया जलाते हुए अपनी भीतर की सात्विक प्रवृत्तियों,सद्-इच्छाओं को प्रकट करना है। इसी संदर्भ में महात्मा कबीरदास जी ने कहा था-‘बाहर से तो कुछ न दीसे, भीतर जल रही जोत।’ भीतर की इसी जोत से कोरोना को हराना है। यह अपने भीतर की सुषुप्त चेतना को जगाने का अनुपम माध्यम है। यह हमारे आभामंडल की विशुद्धि, पर्यावरण की स्वच्छता एवं कोरोना मुक्ति के प्रति जागरूकता का संदेश देने का आह्वान है।
ज्ञान के प्रकाश की आवश्यकता केवल भीतर के अंधकार मोह-मूर्च्छा को मिटाने के लिए ही नहीं,अपितु कोरोना की आपातस्थिति के परिणामस्वरूप खड़ी हुई बाहरी समस्याओं को सुलझाने के लिए भी जरूरी है। यदि आप केवल नौ मिनट के लिए सारी इंद्रियों को विश्राम देकर बिलकुल स्थिर और एकाग्र होकर अपने भीतर झाँकना शुरू कर दें और एक दीया जलाएं तो आपको कोई ऐसी झलक मिल जाएगी कि आप रोमांचित हो जाएँगे। आपको एक दिव्य प्रकाश मिलेगा। दीए का संदेश है-हम जीवन से कभी पलायन न करें,जीवन को परिवर्तन दें,क्योंकि पलायन में मनुष्य के दामन पर बुजदिली का धब्बा लगता है,जबकि परिवर्तन में कोरोना मुक्ति की संभावनाएँ जीवन की सार्थक दिशाएँ खोज लेती हैं। असल में दीया उन लोगों के लिए भी चुनौती है जो अकर्मण्य,आलसी, निठल्ले,दिशाहीन और चरित्रहीन बनकर कोरोना को एक महामारी की बजाय षडयंत्र के रूप में देखते हैं।

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