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विश्व शान्ति दिवस-बढ़ते कदम

योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र)
पटना (बिहार)
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विश्व शांति दिवस स्पर्धा विशेष……

विश्व शान्ति दिवस या अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति दिवस संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देशानुसार हर वर्ष मनाया जाता है। भारत एक संघर्ष-निवारक,शान्तिप्रिय देश है। सर्वकल्याण की भावना इसके कार्य-कलापों में निहित है।
ऊँ सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:। सर्वे भद्राणि पयन्तु मा कचित्दु:खभाग भवेद्ll
अर्थात्,-“सभी सुखी हों,सभी रोगमुक्त रहें,सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।”

भारत के लोग तो विश्व शान्ति क्या अंतरिक्ष तक के लिए शान्ति की कामना करते हैं।
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष शान्ति:, पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:, सर्वँ शान्ति:,शान्तिरेव शान्ति:,सा मा शान्तिरेधि॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥
हिन्दी में इसे इस रूप में हम पाठ कर सकते हैं:
“शान्ति: कीजिए,प्रभु त्रिभुवन में,जल में,थल में और गगन में,
अन्तरिक्ष में,अग्नि पवन में,औषधि,वनस्पति,वन,उपवन में,
सकल विश्व में अवचेतन में!
शान्ति राष्ट्र-निर्माण सृजन,नगर,ग्राम और भवन में
जीवमात्र के तन,मन और जगत् के हो कण कण में! ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥”

विश्व शांति सभी देशों या लोगों के बीच और उनके भीतर स्वतंत्रता,शांति और खुशी का एक आदर्श है। विश्व शांति पूरी पृथ्वी में अहिंसा स्थापित करने का एक माध्यम है,जिसके तहत देश या तो स्वेच्छा से या शासन की एक प्रणाली के जरिए इच्छा से सहयोग करते हैं,ताकि युद्ध को रोका जा सके। हालांकि,कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग विश्व शांति के लिए सभी व्यक्तियों के बीच सभी तरह की दुश्मनी के खात्मे के सन्दर्भ में किया जाता है। विश्व शांति दिवस अथवा ‘अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस’ सभी देशों और लोगों के बीच स्वतंत्रता,शांति और खुशी का एक आदर्श माना जाता है। यह मुख्य रूप से पूरी पृथ्वी पर शांति और अहिंसा स्थापित करने के लिए मनाया जाता है। शांति सभी को प्यारी होती है। इसकी खोज में मनुष्य अपना अधिकांश जीवन न्यौछावर कर देता है,किंतु यह काफ़ी निराशाजनक है कि आज चारों तरफ़ फैले बाज़ारवाद ने शांति को व्यक्ति से और भी दूर कर दिया है। पृथ्वी,आकाश व सागर सभी अशांत हैं। स्वार्थ और घृणा ने मानव समाज को विखंडित कर दिया है। यूँ तो ‘विश्व शांति’ का संदेश हर युग और हर दौर में दिया गया है,लेकिन इसको अमल में लाने वालों की संख्या बेहद कम रही है। वर्ष १९८२ से शुरू होकर २००१ तक सितम्बर महीने का तीसरा मंगलवार ‘अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस’ या ‘विश्व शांति दिवस’ के लिए चुना जाता था,लेकिन वर्ष २००२ से इसके लिए २१ सितम्बर का दिन घोषित कर दिया गया। वर्ष २०१२ के ‘विश्व शांति दिवस’ के अंतर्निहित प्रसंग था-धारणीय भविष्य के लिए धारणीय शांति। सम्पूर्ण विश्व में शांति कायम करना आज संयुक्त राष्ट्र का मुख्य लक्ष्य है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर में भी इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष को रोकने और शांति की संस्कृति विकसित करने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र संघ का जन्म हुआ है। संघर्ष,आतंक और अशांति के इस दौर में अमन की अहमियत का प्रचार-प्रसार करना बेहद ज़रूरी और प्रासंगिक हो गया है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ,उसकी तमाम संस्थाएँ,गैर-सरकारी संगठन,और राष्ट्रीय सरकारें आदि प्रतिवर्ष ‘अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस’ का आयोजन करती हैं। शांति का संदेश दुनिया के कोने-कोने में पहुँचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने कला,साहित्य,सिनेमा, संगीत और खेल जगत की विश्वविख्यात हस्तियों को शांतिदूत भी नियुक्त कर रखा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने तीन दशक पहले यह दिन सभी देशों और उनके निवासियों में शांतिपूर्ण विचारों को सुदृढ़ बनाने के लिए समर्पित किया था। शांति का अंतर्राष्ट्रीय दिवस, अधिकारिक रूप में विश्व शांति दिवस के नाम से जाना जाता है। संयुक्त राष्ट्र में प्रतिवर्ष इस दिन छुट्टी मनाई जाती है। यह विश्व शांति के लिए समर्पित है और विशेष रूप से युद्ध और हिंसा को दूर रखना सुनिश्चित करने के लिए,जैसे मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए,युद्ध क्षेत्र में एक अस्थायी युद्धविराम आयोजित किया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव द्वारा २०१३ में इस दिन-को शांति शिक्षा के लिए समर्पित किया गया। यह युद्ध निवारक है,जिसका मतलब है कि युद्ध को लगातार कम करना।

विश्व शान्ति दिवस का इतिहास देखें तो २०१७ वैश्विक उत्सव का सर्वेक्षण,२०१८ संयुक्त राष्ट्र शांति दिवस थीम शांति का अधिकार,२०१८ वैश्विक उत्सव का सर्वेक्षण,२०१९-शांति के लिए जलवायु कार्रवाई हैl विश्व शांति दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य युद्ध को कम करना है। यह इसलिए आवश्यक है कि,आज भी अमेरिका और चीन का आमना-सामना है। भारत पर युद्ध थोपने को पाकिस्तान और चीन हर समय प्रयत्नशील हैं। रूस भी चीन के खिलाफ ही है। इरान अमेरिका के खिलाफ है,तो उस कारण चीन से मिला हुआ है। पल-पल युद्ध की आशंका मँडराती रहती है। ऐसे समय में आने वाला विश्व शान्ति दिवस मरहम का ही काम करेगा,ताकि युद्ध को टाला जा सके और विशाल जन-धन की हानि को रोका जा सके। अब अगर युद्ध होगा तो वह कब परमाणु-हथियार-युद्ध में बदल जायेगा,इसका कोई ठौर-ठिकाना नहीं है। इसीलिए भी शान्ति दिवस को मनाने की आवश्यकता है।

परिचय-योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र) का जन्म २२ जून १९३७ को ग्राम सनौर(जिला-गोड्डा,झारखण्ड) में हुआ। आपका वर्तमान में स्थाई पता बिहार राज्य के पटना जिले स्थित केसरीनगर है। कृषि से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण श्री मिश्र को हिन्दी,संस्कृत व अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-बैंक(मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त) रहा है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन सहित स्थानीय स्तर पर दशेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए होकर आप सामाजिक गतिविधि में सतत सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,आलेख, अनुवाद(वेद के कतिपय मंत्रों का सरल हिन्दी पद्यानुवाद)है। अभी तक-सृजन की ओर (काव्य-संग्रह),कहानी विदेह जनपद की (अनुसर्जन),शब्द,संस्कृति और सृजन (आलेख-संकलन),वेदांश हिन्दी पद्यागम (पद्यानुवाद)एवं समर्पित-ग्रंथ सृजन पथिक (अमृतोत्सव पर) पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्पादित में अभिनव हिन्दी गीता (कनाडावासी स्व. वेदानन्द ठाकुर अनूदित श्रीमद्भगवद्गीता के समश्लोकी हिन्दी पद्यानुवाद का उनकी मृत्यु के बाद,२००१), वेद-प्रवाह काव्य-संग्रह का नामकरण-सम्पादन-प्रकाशन (२००१)एवं डॉ. जितेन्द्र सहाय स्मृत्यंजलि आदि ८ पुस्तकों का भी सम्पादन किया है। आपने कई पत्र-पत्रिका का भी सम्पादन किया है। आपको प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो कवि-अभिनन्दन (२००३,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन), समन्वयश्री २००७ (भोपाल)एवं मानांजलि (बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन) प्रमुख हैं। वरिष्ठ सहित्यकार योगेन्द्र प्रसाद मिश्र की विशेष उपलब्धि-सांस्कृतिक अवसरों पर आशुकवि के रूप में काव्य-रचना,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के समारोहों का मंच-संचालन करने सहित देशभर में हिन्दी गोष्ठियों में भाग लेना और दिए विषयों पर पत्र प्रस्तुत करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-कार्य और कारण का अनुसंधान तथा विवेचन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचन्द,जयशंकर प्रसाद,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और मैथिलीशरण गुप्त है। आपके लिए प्रेरणापुंज-पं. जनार्दन मिश्र ‘परमेश’ तथा पं. बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ हैं। श्री मिश्र की विशेषज्ञता-सांस्कृतिक-काव्यों की समयानुसार रचना करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत जो विश्वगुरु रहा है,उसकी आज भी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी को राजभाषा की मान्यता तो मिली,पर वह शर्तों से बंधी है कि, जब तक राज्य का विधान मंडल,विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।”

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