कुल पृष्ठ दर्शन : 182

You are currently viewing गलत और भ्रामक अनुवाद:हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों पर भारी

गलत और भ्रामक अनुवाद:हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों पर भारी

प्रो. निरंजन कुमार
दिल्ली
********************************

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को समझना होगा कि गलत और भ्रामक अनुवाद हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों पर भारी पड़ रहा है। प्रश्न-पत्र मूल रूप से अंग्रेजी में बनते हैं,फिर उनका हिंदी में अनुवाद किया जाता है। इन प्रश्नों के हिंदी अनुवाद को लेकर ही विवाद खड़ा हुआ है।
भारतीय राजव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में सरकार के अलावा जिन संवैधानिक संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही है,उनमें चुनाव आयोग, उच्चतम न्यायालय आदि के साथ-साथ संघ लोक सेवा आयोग भी शामिल है। आयोग का प्रमुख कार्य सिविल सेवा में नियुक्ति संबंधी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं को सम्पन्न कराना है। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो अन्य संवैधानिक संस्थाओं के मुकाबले यूपीएससी विवादों से मुक्त रहा है,लेकिन पिछले कुछ वर्षो से यूपीएससी की परीक्षा पद्धति पर हिंदी माध्यम के परीक्षाíथयों द्वारा सवाल खड़े किए जा रहे हैं। यह परीक्षा हिंदी माध्यम के परीक्षाíथयों के लिए टेढ़ी खीर बनती जा रही है।

हिंदी अनुवाद को लेकर विवाद
दरअसल विभिन्न विषयों के प्रश्न-पत्र के हिंदी अनुवाद को लेकर ही विवाद खड़ा हुआ है। पहले भी सामान्यतया प्रश्न-पत्र अंग्रेजी में ही बनते थे,फिर हिंदी में अनुवाद होता था, लेकिन लगता है कि अनुवाद में अब तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है,इसीलिए गड़बड़ियां हो रही हैं।

अंग्रेजी की वाक्य रचना हिंदी से काफी अलग-
अनुवाद में तकनीक का उपयोग कई तरीकों से हो सकता है। एक तो मशीनी या कम्प्यूटरीकृत अनुवाद( गूगल अनुवाद), इसमें दिक्कत यह है कि इस अनुवाद में कई बार वाक्यों और शब्दों का सही अर्थ नहीं हो पाता। इसका कारण यह है कि अंग्रेजी की वाक्य रचना हिंदी से काफी अलग होती है।
अंग्रेजी वाक्यों के मशीनी अनुवाद में हिंदी में अर्थ कई बार स्पष्ट नहीं हो पाता।
हिंदी की वाक्य रचना में कर्ता,कर्म और क्रिया का क्रम होता है (राम घर जाता है),जबकि अंग्रेजी में कर्ता,क्रिया और कर्म (राम गोज होम)। यह उदाहरण अत्यंत सरल और छोटे वाक्य का है, इसलिए इसे समझना कठिन नहीं,लेकिन जटिल और बड़े अंग्रेजी वाक्यों के मशीनी अनुवाद में हिंदी में अर्थ कई बार स्पष्ट नहीं हो पाता,जिसका खामियाजा हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों को भुगतान पड़ता है।

अर्थ का अनर्थ होने की आशंका-
मशीनी अनुवाद की दूसरी समस्या है कि शब्दों के अर्थ का अनर्थ होने की आशंका रहती है। इसका कारण यह है कि शब्दों के अर्थ अपनी संस्कृति और संदर्भ से भी निकलते हैं। उदाहरण के लिए कई बार अंग्रेजी के ‘बिग ब्रदर’ का अनुवाद ‘बड़ा भाई’ कर दिया जाता है,जबकि ‘बिग ब्रदर’ अंग्रेजी में नकारात्मक अर्थो में प्रयुक्त होता है।
समझना जरूरी है कि जॉर्ज ऑरवेल के प्रसिद्ध उपन्यास ‘१९८४’ से चर्चित हुआ मुहावरा ‘बिग ब्रदर’ अंग्रेजी में नकारात्मक अर्थो में प्रयुक्त होता है। इसका अर्थ है डराने-धमकाने वाला व्यक्ति या देश,जबकि इसके उलट भारत में बड़ा भाई का प्रयोग अत्यंत सकारात्मक अर्थो में होता है।

भ्रामक हो सकता है गूगल अनुवाद-
भारतीय संदर्भ में हिंदी या भारतीय भाषाओं में अनुवाद करते समय संदर्भ को ध्यान में न रखने से मशीनी या गूगल अनुवाद भ्रामक हो सकता है। एक और उदाहरण है अंग्रेजी शब्द ‘हॉट पोटैटो’। इसका अर्थ होता है एक विवादास्पद विषय या असहज करने वाला विषय,लेकिन इसका गूगल अनुवाद ‘गर्म आलू’ मिलता है,जो कहीं से भी मूल अर्थ को संप्रेषित नहीं करता।

‘डिलीवरी’ शब्द का अनुवाद ‘परिदान’
अनुवाद में तकनीक के उपयोग से होने वाली गड़बड़ी का एक अन्य आयाम यह है कि यूपीएससी अथवा विभिन्न अभिकरणों के अनुवादक मानक शब्दकोशों जैसे गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग द्वारा जारी ई-महाशब्दकोश की जगह अन्य वेबसाइटों के आधार पर अनुवाद कर देते हैं। जैसे इसी साल सिविल सेवा के प्रारंभिक परीक्षा में पूछे गए एक प्रश्न में अंग्रेजी के ‘डिलीवरी’ शब्द का अनुवाद ‘परिदान’ किया गया है। राजभाषा विभाग द्वारा के अनुसार इसका अर्थ वितरण या सुपुर्दगी है।
इसी तरह अंग्रेजी के ‘सिनेरियो’ का अनुवाद ‘दृश्यलेख’ कर दिया गया है,जो सही नहीं है। कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि अगर हिंदी अनुवाद गलत या भ्रामक है,तो परीक्षाíथयों को मूल अंग्रेजी पाठ देख लेना चाहिए, लेकिन प्रारंभिक परीक्षा में समय इतना कम होता है कि बार-बार हिंदी और अंग्रेजी दोनों पाठों में मिलान करना मुमकिन नहीं है।

अवसर से भी वंचित करता है गलत अनुवाद
जिस कठिन परीक्षा में १-१ अंक के लिए संघर्ष होता हो,वहां जटिल,भ्रामक,दुबरेध और गलत अनुवाद हिंदी माध्यम के लोगों को अवसर की समानता से भी वंचित करता है। कुछ वर्षों से हिंदी माध्यम से सफल होने वाले उम्मीदवारों की संख्या में जो खासी गिरावट आई है,उसका एक बड़ा कारण इस तरह के अनुवाद भी हैं। यूपीएससी को समझना होगा कि अच्छे अनुवाद के लिए जरूरी है कि,मशीनी अनुवाद का न्यूनतम सहारा लिया जाए।

अनुवादक को सम्यक ज्ञान हो-
अनुवाद के इस बुनियादी सिद्धांत को ध्यान में रखा जाए कि अनुवादक को न केवल दोनों भाषाओं अर्थात स्रोत भाषा(जिस भाषा से अनुवाद किया जा रहा है)और लक्ष्य भाषा (जिस भाषा में अनुवाद किया जा रहा है)का ठीक-ठाक ज्ञान हो,बल्कि विषय का भी सम्यक ज्ञान हो। भ्रामक अनुवाद से हिंदी माध्यम के परीक्षाíथयों के साथ अन्याय हो रहा है,जो परीक्षा के उद्देश्य के विपरीत है। भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति नहीं होगी, यूपीएससी जैसी पेशेवर संस्था से यह अपेक्षा तो की ही जा सकती है।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुम्बई)

Leave a Reply