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खुद ‘एडिटर्स ‍गिल्ड’ सवालों के घेरे में ?

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

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यह सचमुच विचारणीय प्रश्न है कि,आज देश में प्रेस स्वतंत्रता की रक्षक और सम्पादकों की सबसे बड़ी संस्था ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ खुद सवालों के घेरे में क्यों आ गई है ? इसी साल में यह दूसरा मौका है,जब किसी सम्पादक ने संस्था की नीयत पर सवाल उठाते हुए गिल्ड की सदस्यता से त्याग-पत्र दे दिया है। मेघालय से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक की सम्पादक और पूर्वोत्तर की जानी-मानी पत्रकार तथा सामाजिक कार्यकर्ता पैट्रिशिया मुखीम ने २ दिन पहले ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ पर यह आरोप लगाते हुए इस्तीफा दिया कि,गिल्ड केवल हस्ती पत्रकारों का बचाव करती है। मुखीम की नाराजी इस बात को लेकर है कि शिलांग उच्च न्यायालय ने पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने से इंकार कर दिया,लेकिन गिल्ड ने इस पर कुछ नहीं कहा। आपत्ति इस बात पर भी है कि,गिल्ड ने संस्था का सदस्य न होने के बावजूद भी सम्पादक अर्णब गोस्वामी की मुंबई पुलिस द्वारा ‍गिरफ्‍तारी की निंदा करते हुए बयान जारी कियाl मुखीम का कहना है कि गिल्ड का यह रवैया पक्षपातपूर्ण है। इसमें निहित सवाल ये है कि प्रेस और पत्रकार की अभिव्यक्ति और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के मापदंड अलग-अलग क्यों हैं ?

मुखीम पर मुकदमा जिस मामले को लेकर दायर हुआ है,इससे हटकर केवल हस्ती की बात करें तो,खुद मुखीम अर्णब जितनी लोकप्रिय और दबंग भले न हों,लेकिन पत्रकारिता में जाना-पहचाना नाम है। वो मेघालय जैसे राज्य में आदिवािसयों के ‍हितों खासकर खनन क्षेत्र में हो रहे शोषण और भ्रष्टाचार के खिलाफ काफी मुखर रही हैं। यही नहीं,उन्होंने राज्य की जनजातियों में मातृसत्तात्मक समाज और परम्पराओं की व्यावहारिता पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने मेघालय की ३ प्रमुख जनजातियों(खासी,गारो और जयंतिया)पर कई किताबें भी लिखी हैं। वे भारत सरकार की कई समितियों में रही हैं। उन्हें कई पुरस्कार मिले हैं,जिनमें पद्मश्री भी शामिल है। खास बात यह है कि मुखीम स्वयं भी खासी आदिवासी हैं,लेकिन आदिवासी-गैर आदिवासी टकराव में वो गैर आदिवासियों के पक्ष में मुखर रहती आई हैं। वो मेघालय को एक असफल राज्य मानती हैं। उन पर २ साल पहले हमला भी हो चुका है। ६७ वर्षीय मुखीम उन पर दायर मुकदमे को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला मानती हैं। ‘एडिटर्स ‍गिल्ड ऑफ इंडिया’ की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा को लिखी चिट्ठी में मुखीम ने कहा कि,मैं अब इसकी सदस्यता से इस्तीफा देना चाहती हूँ,क्योंकि पत्रकार के तौर पर मैं हस्ती सम्पादकों की उस लीग का हिस्सा नहीं हूँ,जिनके अखबार व्यापक तौर पर पढ़े जाते हैं। मुखीम की चिट्ठी पर गिल्ड की ओर से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई थी। बताया जाता है कि गिल्ड ने मुखीम से अपना त्यागपत्र वापस लेने का आग्रह किया था,लेकिन उन्होंने इंकार कर ‍दिया। मुखीम ने कहा है कि वह इस्तीफा वापस नहीं लेंगी और शिलांग उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देंगी। उन्होंने कहा कि,अर्णब गोस्वामी प्रकरण में उच्च न्यायालय के जस्टिस डी.वाय. चंद्रचूड द्वारा की गई ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ को लेकर की गई टिप्पणी महत्वपूर्ण है।

अब ‍’एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ के बारे में,तो गिल्ड भारत में सम्पादकों की शीर्ष संस्था है। इसकी स्थापना १९७८ में आपातकाल हटने के बाद देश में प्रेस की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने तथा पत्र-पत्रिकाओं में सम्पादकीय नेतृत्व के मानदंड कायम करने के उद्देश्य से की गई थी।संस्था का उद्देश्य देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष और ‍निर्भीक पत्रकारिता की रक्षा करना है। गिल्ड स्वयं को ‘अंतरात्मा का रखवाला’ मानती है। वह पत्रकारिता में शोध कार्य व उत्कृष्टता के लिए कई फेलोशिप तथा पुरस्कार भी देती है,जिनकी अपनी प्रतिष्ठा है। जब भी देश में पत्रकारों के उत्पीड़न तथा पत्रकारिता पर हमले और प्रताड़ना की बात आती है,गिल्ड उसकी निंदा करती है। मुखीम की पीड़ा यह है कि गिल्ड ने अर्णब की ‍गिरफ्तारी के बाद तो तत्काल उसकी निंदा की,लेकिन मुखीम के मामले में कुछ नहीं कहा। अर्णब स्वयं गिल्ड की सदस्यता से ७ माह पूर्व इस्तीफा दे चुके हैं। यह इस्तीफा भी उन्होंने गिल्ड पर आरोप लगाते हुए दिया था कि,वह ‘फेक न्यूज’ फैलाने वाली समाचार संस्थाओं के मामले में कोई स्टैंड नहीं लेती।

यहां ज्वलंत सवाल यह है कि,जो गिल्ड अर्णब के मामले में तुरंत मुखर हुई,वह मुखीम के मामले में मौन क्यों है ? क्या यह पत्रकार-पत्रकार के बीच का भेद है ? चूंकि अर्णब के पास बवाल खड़ा करने का प्रभावशाली मंच है और मुखीम के पास नहीं है,इसलिए ? या फिर अर्णब की पीठ पर सत्ता का अदृश्य है और मुखीम के पास नहीं है,इसलिए ? मुखीम सत्ता के खिलाफ और मेघालय में प्रभावशाली आदिवासी समुदाय के हितों के खिलाफ बोलती रही हैं,इसलिए ? या फिर पूर्वोत्तर की पत्रकारिय आवाजों का मुख्य भूमि की पत्रकारिता की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता,इसलिए ? कहीं कोई बात तो है। अगर यह चुप्पी इसलिए है कि मुखीम पर साम्प्रदायिक सदभाव बिगाड़ने का आरोप है,तो अर्णब की गिरफ्‍तारी भी आपराधिक मामले में ही हुई थी (भले ही इसके पीछे राजनीतिक उद्देश्य हो)। आंतरिक विवशताएं जो भी हो,लेकिन जो संदेश जा रहा है,वो यही है कि पत्रकारिता में निष्पक्षता की पैरोकार गिल्ड मुखीम के मामले में असमंजस में क्यों है ? गिल्ड की विश्वसनीयता कायम रहने के लिए इस असमंजस की धुंध तो छंटनी ही चाहिए।

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