कुल पृष्ठ दर्शन : 14

You are currently viewing तुम कौन होते हो ?

तुम कौन होते हो ?

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
*******************************************

हिंदू सूर्य की पूजा करते हैं,
मुसलमान चाँद में आस्था रखते हैं
लेकिन सूरज कब कहता है कि,
मैं रोशनी केवल हिंदू को दूंगा
चाँद कब कहता है कि, अपनी शीतलता केवल मुसलमान को दूंगा!
दोनों सबको रोशनी और शीतलता,
देते हैं बिना भेदभाव के
पारसी धर्म वाले आग की पूजा करते हैं,
आग कब रहती है कि,
मैं हिंदू के घर नहीं जलूंगी
मैं मुसलमान के घर नहीं जलूंगी,
वह तो सबके घर जलती है
अमीर के घर भी, गरीब के घर भी,
महलों में भी और फुटपाथ पर भी।
पर, ये दुष्ट मनुष्य…
इन सबमें भेद करने वाले
तुम कौन होते हो ?

मैं तो ऊपर से सीधे-साधे इंसान,
भेजता हूँ धरती पर
उसे हिंदू, मुसलमान, सिख, इसाई, पारसी, जैन, बौद्ध इत्यादि,
बनाने वाले तुम कौन होते हो ?

इंसान को इंसान तो रहने दो,
जाति-धर्म में क्यों बांटते हो ?
संभल जाओ अभी भी समय है।
नहीं तो ‘विनाश काले,
विपरीत बुद्धि’ तो है ही…॥

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।