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दहन

संजय एम. वासनिक
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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मैं समेट रहा हूँ आज,
घृणित व्यवहार की
कुछ लकड़ियाँ और,
द्वेष के कुछ उपले
थोड़ी-सी घास-फूस कुछ सूखी,
कुछ गीली ईर्ष्या वाली
जलन और मतभेदों की
हरी, लाल, नीली, पीली,
काली, सफ़ेद और गेरूए रंग की घास
सोचा आज इन सबका दहन कर दूँ।

लगाकर एक ही रंग की आग,
जिसकी ज्वालाओं की लपटें
उठाना चाहता हूँ आसमान के भी पार,
ताकि सारी दुनिया देख सके
या शायद महसूस कर सके,
अग्निशिखाओं की आँच।

करेंगे आप थोड़ी-सी मदद!
झोंकने में उन आग की लपटों में
जात-पात, धर्म-कर्म, ऊँच-नीच,
अमीर-गरीब और बहुत कुछ ऐसा ही
बस बचाना चाहता हूँ केवल ऐसे,
इंसान को जिसमें हो इंसानियत
जो इंसान से इंसान की तरह आए पेश,
जिसके हृदय में हो दया, करुणा, प्रेम,
बंधुभाव और आदर का सागर।

बस यही एक मेरी तमन्ना है,
सही है या गलत कामना है
सारे विश्व में फैले शांति का संदेश,
विनम्रतापूर्वक यही एक माँग है।
सही लगे अगर, तो सहायता करो मेरी,
इंसान को इंसान बनाने के लिए॥

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