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आमजन का विश्वास जीतें सरकारी चिकित्सक

विनोद वर्मा आज़ाद
देपालपुर (मध्य प्रदेश) 

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शासकीय स्तर पर मिलने वाली सुविधाओं को अक्सर लोग नज़र अंदाज़ करते हैं,यथा-सरकारी अस्पतालों में जाने की बजाय ‘नीम हकीम खतरा जान’ के पास जाना ज्यादा पसंद करते हैं,पैसा भी लुटाते हैं,पर चिकित्सकीय परीक्षा पास करने के पश्चात कई वर्षों की पढ़ाई,प्रयोग,चीर-फाड़ के बाद एक बेशकीमती चिकित्सक तैयार होता है। कुछ लोग शासकीय चिकित्सालय से जब दवाइयां लाते हैं तो वे ५-७ डिब्बे और खोखे में से दवाई देते हैं,तब मरीजों को ऐसा लगता है कि सबको तो इनमें से ही दवाई देते हैं, इससे क्या जल्दी ठीक हो जाएंगे ?यह मनोवैज्ञानिक भाव जब मरीज के मन में आता है तो उस पर दवाइयों का प्रभाव नहीं होता और होता भी है तो वह धीमे-धीमे होता है,जबकि आज का मरीज उतावला हो गया है,उसे तो जल्दी ठीक होना है बस!
चिकित्सक शासकीय दिशा-निर्देशों के तहत बंधा होकर कम से ज्यादा खुराक की ओर इलाज करता है इसलिए मरीज को ठीक होने में समय लगता है। मरीज यह सोचकर ही अशासकीय,झोला छाप चिकित्सक के पास चला जाता है,उसे तो पैसा मिलता है वह महंगी व उच्च प्रभाव वाली की दवाइयां दे देता है यानी सीधे-सीधे उच्च खुराक।
मरीज जल्दी ठीक तो हो जाता है किंतु उसके दुष्परिणाम भी होते हैं। यह वो नहीं जानता,और अगर उसे बता भी दिया जाए तो वह उस बात को ‘इस कान सुनो,उस कान निकालो’ वाली कहावत को चरितार्थ करता है। मन में सोचता है ‘हो मैं कब तक घर बैठता,काम-धंधा भी तो है,मजूरी नी करूँगा तो खाऊंगा क्या ?’ उस वक्त वह शारीरिक नफे-नुकसान की नहीं,काम-धंधे की सोचता है।
दूसरी ओर शासकीय चिकित्सालयों में कहीं चिकित्सकों की कमी है तो कहीं चिकित्सक होते हुए भी अपने कर्तव्य की पूर्ति नहीं कर पा रहे ? यही वजह है कि शासकीय चिकित्सालयों से लोग अविश्वास के कारण दूर हो रहे हैं। मशीनों का रख-रखाव ठीक से नहीं हो पाने के कारण भी लोग दूर हो रहे हैं। गर्भवती महिलाओं में आत्मविश्वास भरने वाली महिला चिकित्सक भी ऐसी नहीं आती जो विश्वास दे सके। शहरों की ओर मुँह कर दिया जाता है और वहां अधिकांश सीजर से जन्म हो रहा है। हाँ,एक विज्ञापन जरूर देखने को मिलता है उसमें यह वार्तालाप सार निकलता है कि वाहन में समय पर आयल डालना,धोना,पेट्रोल डालना,पंक्चर हो जाए तो जुड़वाना आदि! आशय पता चलता है, फिर शरीर से जोड़कर प्रश्न होता है जब हम गाड़ी की इतनी देखभाल करते हैं तो फिर इस बेशकीमती शरीर की परवाह क्यों नहीं करते ?
इसका प्रभाव शनै-शनै: हो रहा है। अब शासन स्तर पर प्रभावी कदम उठाए जा रहे हैं इसलिए शासकीय संस्थानों की ओर लोगों के कदम उठ रहे हैं। आमजन का विश्वास निश्चित रूप से शासकीय चिकित्सक जीतने में सफल होंगे! कई अशासकीय संस्थानों में बहुत अच्छे चिकित्सक भी हैं,कुछ अपने दवाखाना भी लेकर बैठे हैं। वे अपनी सेवाएं ईमानदारी के साथ विश्वास जीतकर दे रहे हैं। उन्हें साधुवाद और सरकारी संस्थानों के चिकित्सकों को शुभकामनाएं।

परिचय-विनोद वर्मा का साहित्यिक उपनाम-आज़ाद है। जन्म स्थान देपालपुर (जिला इंदौर,म.प्र.) है। वर्तमान में देपालपुर में ही बसे हुए हैं। श्री वर्मा ने दर्शन शास्त्र में स्नातकोत्तर सहित हिंदी साहित्य में भी स्नातकोत्तर,एल.एल.बी.,बी.टी.,वैद्य विशारद की शिक्षा प्राप्त की है,तथा फिलहाल पी.एच-डी के शोधार्थी हैं। आप देपालपुर में सरकारी विद्यालय में सहायक शिक्षक के कार्यक्षेत्र से जुड़े हुए हैं। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत साहित्यिक,सांस्कृतिक क्रीड़ा गतिविधियों के साथ समाज सेवा, स्वच्छता रैली,जल बचाओ अभियान और लोक संस्कृति सम्बंधित गतिविधियां करते हैं तो गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षण सामग्री भेंट,निःशुल्क होम्योपैथी दवाई वितरण,वृक्षारोपण,बच्चों को विद्यालय प्रवेश कराना,गरीब बच्चों को कपड़ा वितरण,धार्मिक कार्यक्रमों में निःशुल्क छायांकन,बाहर से आए लोगों की अप्रत्यक्ष मदद,महिला भजन मण्डली के लिए भोजन आदि की व्यवस्था में भी सक्रिय रहते हैं। श्री वर्मा की लेखन विधा -कहानी,लेख,कविताएं है। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचित कहानी,लेख ,साक्षात्कार,पत्र सम्पादक के नाम, संस्मरण तथा छायाचित्र प्रकाशित हो चुके हैं। लम्बे समय से कलम चला रहे विनोद वर्मा को द.साहित्य अकादमी(नई दिल्ली)द्वारा साहित्य लेखन-समाजसेवा पर आम्बेडकर अवार्ड सहित राज्य शिक्षा केन्द्र द्वारा राज्य स्तरीय आचार्य सम्मान (५००० ₹ और प्रशस्ति-पत्र), जिला कलेक्टर इंदौर द्वारा सम्मान,जिला पंचायत इंदौर द्वारा सम्मान,जिला शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा सम्मान,भारत स्काउट गाइड जिला संघ इंदौर द्वारा अनेक बार सम्मान तथा साक्षरता अभियान के तहत नाट्य स्पर्धा में प्रथम आने पर पंचायत मंत्री द्वारा १००० ₹ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही पत्रिका एक्सीलेंस अवार्ड से भी सम्मानित हुए हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-एक संस्था के जरिए हिंदी भाषा विकास पर गोष्ठियां करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा के विकास के लिए सतत सक्रिय रहना है।

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