महेन्द्र देवांगन ‘माटी’
पंडरिया (कवर्धा )छत्तीसगढ़
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फागुन आया मस्ती लाया,रंग गुलाल उड़ाये।
बाग-बगीचा सुंदर दिखते,भौंरा गाना गाये॥
पीले-पीले सरसों फूले,खेतों में लहराये।
सोने जैसे गेहूँ बाली,सबके मन को भाये॥
खुश होकर के नाचे गोरी,आँचल को लहराये।
बाग-बगीचा सुंदर दिखते,भौंरा गाना गाये॥
ढोल-नगाड़ा बाज रहे हैं,फाग गीत सब गाये।
बच्चे-बूढ़े सभी जनों ने,मिलकर शोर मचाये॥
खेले होली रंग लगाये,कीचड़ बहुत उछाले।
आते न पहचान कोई अब,पक्का रंग सब डाले॥
माटी की सौंधी खुशबू भी,सबके मन को भाये।
बाग-बगीचा सुंदर दिखते,भौंरा गाना गाये॥
परिचय–महेन्द्र देवांगन का लेखन जगत में ‘माटी’ उपनाम है। १९६९ में ६ अप्रैल को दुनिया में अवतरित हुए श्री देवांगन कार्यक्षेत्र में सहायक शिक्षक हैं। आपका बसेरा छत्तीसगढ़ राज्य के जिला कबीरधाम स्थित गोपीबंद पारा पंडरिया(कवर्धा) में है। आपकी शिक्षा-हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर सहित संस्कृत साहित्य तथा बी.टी.आई. है। छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सहयोग से आपकी २ पुस्तक-‘पुरखा के इज्जत’ एवं ‘माटी के काया’ का प्रकाशन हो चुका है। साहित्यिक यात्रा देखें तो बचपन से ही गीत-कविता-कहानी पढ़ने, लिखने व सुनने में आपकी तीव्र रुचि रही है। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर कविता एवं लेख प्रकाशित होते रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कनाडा से प्रकाशित पत्रिका में भी कविता का प्रकाशन हुआ है। लेखन के लिए आपको छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा सम्मानित किया गया है तो अन्य संस्थाओं से राज्य स्तरीय ‘प्रतिभा सम्मान’, प्रशस्ति पत्र व सम्मान,महर्षि वाल्मिकी अलंकरण अवार्ड सहित ‘छत्तीसगढ़ के पागा’ से भी सम्मानित किया गया है।