राधा गोयल
नई दिल्ली
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सूरज आग उगलता है,वह सिर पर ईंटें ढोती है,
अपने दुधमुँहे शिशु को वो,बजरी के ढ़ेर पे रखती है।
माथे से पसीना बहता है,परवाह न उसकी करती है,
बच्चों को पालने की खातिर,वह कितनी मेहनत करती है।
मजदूर उसे कहते हो तुम,मजदूर नहीं-एक माँ है वो,
बच्चों को पालने की खातिर श्रम साध्य कार्य करती है वो।
मत हेय नज़र से देख उसे,उसके श्रम की तू इज्जत कर,
पूरी मजदूरी देने में,बिल्कुल भी ना तू हुज्जत कर॥