डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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अगहन शुक्ला पंचमी, सनातनी त्यौहार।
विवाह दिन श्री राम का, अवध हुआ उजियार॥
हुआ स्वयंवर जानकी, सजा जनक दरबार।
धनु पिनाक को तोड़ने, आये राजावार॥
कठिन प्रतिज्ञा सिया की, वरमाला आधार।
धनुष भंग जो वर करे, पहनाये गलहार॥
तोड़ न पाये शिव धनुष, राजा राजकुमार।
देख दुखी राजा जनक, वीर हीन संसार॥
दुखी जनक राजर्षि थे, सकल भूप बलहीन।
अहंकार मिट्टी पलित, रावण भी श्रीहीन॥
देख झुके नृप भाल सब, जनक हृदय अति पीर।
हो क्या सिय संकल्प अब, हुई धरा बिन वीर॥
बिन विवाह सीता रही, आश जनक कहँ शेष।
पिता मनोरथ वृथा अब, कन्यादान विशेष॥
देख निराशा जनक की, बोले विश्वामित्र।
उठो राम हर क्लेश नृप, तोड़ो धनुष पवित्र॥
रखो मान शिव धनुष का, शत-शत करो प्रणाम।
रखो लाज सिय स्वयंवर, तोड़ धनुष श्रीराम॥
मर्यादित रघुनाथ जी, किया नमन गुरुश्रेष्ठ।
शीश झुका शिव धनुष को, दशरथ नंदन ज्येष्ठ॥
उठा पलक झपते धनुष, टूट गया धनु बीच।
खुशियाँ फैली सभा में, लज्जित राजा नीच॥
देख भंग शिव धनुष को, खिले सिया मुस्कान।
हर्षित रोमांचित जनक, कन्यादान सुहान॥
सिया हाथ रख राम कर, कन्यादान सुभान।
अश्रु नैन लखि जानकी, तात जनक दुख भान॥
हुई सिया रघुवर अवध, मार्गशीर्ष शुभ मास।
शुक्ल पक्ष दिन पञ्चमी, शुभ विवाह उल्लास॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥