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ग़ज़ब ढा गया

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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हाल क्या है शहर का न पूछे कोई,
बसना आकर यहाँ पर ग़ज़ब ढा गया
एक तो आना यहाँ पर यूँ ही था कठिन,
बाप-माँ को सताना ग़ज़ब ढा गया।
हाल क्या है…

कहते माँ-बाप-कुछ तुम यहीं पर करो,
कहना उनका न माना बुरा हो गया
अब है आलम यहाँ पर ठिकाना नहीं,
डोलते दर-बदर हाय क्या हो गया।
हाल क्या है…

आ यहाँ लोग दिनभर लगे काम में,
रात सड़कों पर सोना अजब हो गया।
एक मुसाफ़िर-सा जीवन निकल ये रहा,
कोई घर ना ठिकाना ग़ज़ब हो गया।
हाल क्या है…॥