अंजना सिन्हा ‘सखी’
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
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झूठे सारे रिश्ते-नाते, सब माया रघुराई।
चरण-शरण में मुझको ले लो,
द्वार आपके आई॥
दशरथ नंदन राम दर्श इस, दासी को दे जाओ,
करो कृपा हे रघुकुल भूषण, रूप अनूप दिखाओ।
मैंने अपना माना उसने, ठोकर नित्य लगाई…,
चरण शरण में मुझको ले लो,
द्वार आपके आई॥
शबरी के जूठे बेरों को, प्रेम भक्ति वश खाते,
तुम हो दीनानाथ कृपा की, दृष्टि सदा बरसाते।
भवसागर से कितनों की ही, नैया पार लगाई…,
चरण-शरण में मुझको ले लो,
द्वार आपके आई॥
मर्यादा का पालन करना, रघुवर हमें सिखाते,
इसी लिए तो ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ वे कहलाते।
मातु-पिता आज्ञा वचनों की, पालन विधि सिखलाई…,
चरण-शरण में मुझको ले लो,
द्वार आपके आई॥
आस और विश्वास ‘सखी’ का,
मुझको पार लगाना,
अनाचार अधर्म अनीति से, मुझको नाथ बचाना।
‘सखी अंजना’ पर रघुनंदन,
करना कृपा सवाई…,
चरण-शरण में मुझको ले लो,
द्वार आपके आई॥