राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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आतंक,विनाश और ज़िंदगी (पहलगाम हमला विशेष)…
पावन, सुंदर धरती अपनी
छाया आतंकी साया है
निर्दोषों का लहू बहा कर,
कौन-सा धर्म निभाया है ?
माँओं की कोख करी सूनी,
सिंदूर किसी का मिटा दिया मानवता को बदनाम किया,
कैसा अधर्म अपराध किया ?
प्राणों के दुश्मन बन करके,
हँसतों को खूब रुलाया है॥
निर्दोषों का लहू बहाकर,
कौन-सा धर्म निभाया है…?
कर अमानवीय कृत्य तू,
खुद को नेक समझता है
ऐसे निर्मम हत्यारे को,
खुदा भी माफ न करता है।
हँसते-गाते परिवारों पर,
कैसा कहर बरपाया है ?
निर्दोषों का लहू बहाकर,
कौन-सा धर्म निभाया है…?
सब धर्म प्रेम हैं सिखलाते,
मानवता का गुण ही गाते
राक्षस बनकर तू आया है,
सोया शेर जगाया है।
शर्म-वर्म कभी आती न,
तुझे कितनी बार हराया है॥
निर्दोषों का लहू बहाकर,
कौन-सा धर्म निभाया है…?
पूछा धर्म फिर मारी गोली,
कैसा ये नरसंहार किया!
सिहर उठी कश्मीर-घाटी,
अत्याचारी महापाप किया।
उबल रहा है खून हिंद का,
होगा अब जल्द सफाया है॥
निर्दोषों का लहू बहाकर,
कौन-सा धर्म निभाया है…?
परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।