प्रो. लक्ष्मी यादव
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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माँ और हम (मातृ दिवस विशेष)…
‘माँ’ का पल्लू पकड़, उसी के साथ जाते थे, खाना जब भी हो, उसी के हाथ से खाते थे’।
जी हाँ, हमारी प्रथम गुरु होती है हमारी माँ, जो जीवन के हर मोड़ पर हमारा साथ देती है। हमें मार्गदर्शित करती है। ‘मातृ दिवस’ के शुभ अवसर पर सभी बच्चे अपनी माँ के लिए कुछ अनोखा उपहार देकर अपना प्यार जताते हैं। सभी के अलग तरीके होते हैं माँ के प्रति प्रेम दर्शाने के, पर क्या माँ किसी उपहार या प्यार की भूखी है ? जो स्वयं ममता और प्यार की मूरत है, जो सबसे अनोखी है, वह क्या उपहार लेगी! हर बच्चा अपने घर से सब-कुछ सीखता है। जब थोड़ा बड़ा होता है तो, वह समाज से सीखता है। हमें जो भी संस्कार मिलते हैं, उसे माँ ही देती है। वह हमें हर मुश्किल से लड़ने के लिए तैयार करती है, मज़बूत बनाती है। हमें प्रेरित करती है और हर मुश्किल को आसान बनाती है।
आज आधुनिकता की चकाचौंध में बच्चे अपनी प्रेरणा किसी अभिनेता या अभिनेत्री को मानते हैं। वर्ष में १ बार मातृ दिवस पर गुलाब का फूल और उपहार देकर माँ को भूल जाते हैं, जबकि माँ को भौतिक वस्तु नहीं, बल्कि मान-सम्मान की ज़रूरत है। हम सब भूल जाते हैं कि, हमारे ईश्वर ख़ुद हमारे माता- पिता हैं। उनके रहते हमें कहीं किसी मंदिर में जाने की ज़रूरत नहीं है। हमारी प्रेरणा का झरना हमारे ही पास है। हमारी माँ सुबह से शाम तक बहुत से ऐसे कार्य करती है, जो जाने-अनजाने में हमें प्रेरित करते हैं। इसलिए, उनका सम्मान करो।