संजय एम. वासनिक
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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जगमग जीवन ज्योति (दीपावली विशेष)….
हर्ष, उल्लास, उमंग और ख़ुशियाँ,
आओ सब मनाएँ हम दीपावली
आतिशबाजी, मिठाइयाँ और
मेहमानों का रेला लायी,
पाँच दिन का त्यौहार ये हम सब मनाएँगे
सारे दुःख, दर्द, ग़म और परेशानियाँ,
थोड़ी देर के लिए हम भूल जाएँगे।
पहला दिन हम मनाएँ वसुबारस का,
आओ करें पूजा हम गोधन की
दूसरा दिन हम मनाएँ धनत्रयोदशी,
करें मंगलकामना सबके स्वास्थ्य की।
तीसरे दिन होगी नरक चतुर्दशी,
मिटा दे सारी बुराइयाँ
काम, क्रोध, लोभ और मत्सर ये सारे,
त्यागकर अपनाएँ सब अच्छाइयाँ।
चौथे दिन हम सब करें आराधना,
धन की देवी लक्ष्मी की
सुखी हो जाए सारा जमाना,
ना रहे कमी धन, धान्य और दौलत की।
पाँचवें दिन को हम जताएँ,
प्रेम, मोहब्बत और त्याग की भावना
बहन को प्यारा लगे भाई,
भाई को भाए प्यारी बहना…।
कैसे मनाऊँ मैं यह त्योहार!
लेकिन अब मैं सोचता हूँ
दुविधाओं में पड़ जाता हूँ
सोच-सोचकर परेशान हो जाता हूँ।
कैसे करूँ मैं गोधन पूजा,
गोधन ही नहीं रहा मेरे पास
सारा चारा खा गए गद्दार,
ना बचा तिनका, ना घास।
कैसे करूँ मैं मंगलकामना,
हरेक के स्वास्थ्य की
देशी भोजन को ठुकराकर,
परदेशी भोजन को जो करें स्वीकार।
कैसे मिटाएँ मन के षडरिपू को,
हर आँख में वासना दिखे
सत्ता और धन के लोभी यहाँ,
मानव मानव के बीच तिरस्कार दिखे।
देवी लक्ष्मी का पता नहीं,
कहाँ रूठकर चली गई
देश की आधी जनता भूखी सोए,
नेता खाए मेवा और दूध मलाई ।
भाई-बहन का प्यार,
ना जाने कहाँ खो गया!
जर और ज़मीन की ख़ातिर,
भाई, बहन का दुश्मन हो गया।
मेरी समझ में अब न आए,
कैसे मनाएँ ख़ुशियाँ हम!
आज के परिवेश में,
दीपक-सा जले मेरा दिल,
सारी ओर नज़र आए
दुःख ज़्यादा और ख़ुशियाँ कम।
आओ हम सब मिलकर,
एक बार फिर से प्रण करें
जाति-जाति में ना बंटें हम,
बंधुभाव और स्नेह बढ़े।
दानशीलता का भाव रखकर,
तन-मन से धन बाँटना शुरू करें।
तब फैलेगी चहुँओर खुशियाली,
तभी मनाऊँगा मैं अपनी दीपावली
तभी मनाऊँगा मैं अपनी दीपावली…॥