डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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डोली परिणीता उठी, लेकर चले कहार।
समदाउन के गीत से, बही अश्रु की धार॥
मातु-पिता से ले विदा, चली सुता ससुराल।
परिणीता आँसू नयन, दुखद विदाई काल॥
डोली से उतरी वधू, आयी खुशी बहार।
सासू ने की आरती, छेंकी दुल्हन द्वार॥
बाजे-गाजे मुदित सब, प्रीति भोज तल्लीन।
प्रीति मिलन की खुशी भी, स्वजन विरह गमगीन॥
परिणीता नव प्रीति मन, साजन था अनजान।
आशंकित प्रिय मिलन पल, खोयी प्रिय मुस्कान॥
प्रथम सुहागन रात यह, प्रथम प्रीत मधुपान।
आलिंगन प्रीतम हृदय, सकुचाती रतिभान॥
नव उमंग सजनी सजन, मिलन युगल अनुराग।
नव दम्पति बंधन मधुर, जीवन रस सहभाग॥
परिणीता परिणीत मन, दाम्पत्य उल्लास।
सुख-दु:ख गम खुशियाँ समा, भर दे साथ मिठास॥
कवि ‘निकुंज’ रस काकिली, मुदित देख नव प्रीत।
मिलन सुहानी रात यह, गाती जीवन गीत॥
नारी जीवन की कथा, व्यथा प्रीत की मीत।
भरी लाज संवेदना, सहनशील सद्नीति॥
एक बार डोली उठी, हुई परायी शान।
फँस ममता वात्सल्य रस, पत्नी माँ सन्तान॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥