लालित्य ललित
दिल्ली
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त्यौहार खत्म हुए नहीं, कि ट्रैफिक ने तौबा न करने की भी कसम खा ली हो। हुआ क्या आजकल पांडेय जी ने अपने दुपहिए से दफ्तर जाना बंद किया, लेकिन राम प्यारी कहती थी-” बलमा उसी से जाया करो, निम्न मध्यवर्गीय अगर कार का सपना लेते हो तो यह असंवैधानिक कदम होगा।”
पांडेय जी घबरा गए और यूँ ही कहा-“प्रियतमा यह क्या बात हुई! काहे मना करती हो! सपना लेने से! निम्न मध्यवर्गीय कभी किसी अभिनेत्री से सपना लेता है और कहीं-कहीं वह इस कदर डूब जाता है कि घर की जिम्मेवारियाँ उसे डूबने से बचा लेती है। अभी कल की बात है कि चुप्पी प्रसाद भट्ट ने अपनी पी.ए. को बुलाया तो दफ्तर के सभी लोगों में हल्ला मच गया! “ये क्या उम्र है अखरोट तोड़ने की!”
तभी बनवारी लाल तनेजा ने कहा,-” मैं कहाँ कहता हूँ कि उनकी उम्र अखरोट तोड़ने की है, अरे किशमिश खाना भी उनके लिए अखरोट तोड़ने के बराबर है।”
तभी पांडेय जी के कमरे का दरवाजा खुला, अंग्रेजी की स्टेनो थी। ‘नमस्ते’ करने के बाद कहने लगीं कि “सरजी आपकी यात्रा कैसी रही!”
पांडेय जी बिजली विभाग की ओर से ५ दिवसीय रिफ्रेशर कोर्स के लिए उत्तराखंड गए थे। २ दिन पहले ही लौटे थे, अंग्रेजी की स्टेनो मिस मलिका ने कहा “आपको देखा नहीं था, इसलिए चिंता हुई। अच्छा सरजी, चलती हूँ।”
पांडेय जी मन ही मन सोचने लगे कि यह क्या हुआ! आई हो तो बतियाना भी चाहिए था, चाय पीती कम-से-कम। फिर सोचा, चलो कोई बात नहीं, यह सामाजिक दस्तूर है। तभी उनके सहयोगी ने कहा कि “पांडेय जी यह आपकी मोहब्बत है कि आप की टोह लेते हुए क्या बंदा और क्या बंदी पहुँचते हैं! अब आपकी चाशनी का कमाल है!”
अब पांडेय जी सोचने लगे कि न तो वह शहद का काम करते हैं और न ही मधुमक्खियों को पालने का शौक रखते हैं। बदहाल जिंदगी के पैबंद लगे लोगों को पांडेय जी जब भी मैट्रो में देखते है उन्हें लगता है कि उनके देश की वीरांगनाओं को ये क्या हुआ है कि कपड़े फटे हुए भी फैशन का प्रतीक बनाए हुए है उनकी प्रतिष्ठा!
फिर मन में आया ख्याल, जाने देते हैं क्योंकि सोचने को बहुत विषय है।
अचानक से वे क्रिएटिव हुए, सोचने लगे! आइए देखते हैं कि उनके मन ने क्या सोचा!-
इश्क़ का क्या है बाऊ जी!
उसे
इश्क़ है,
अपने से
अपने घर से,
अपने परिवार से
और उसे किताबों से,
वह आजकल दरियागंज में संडे मार्किट को किताबें बेच रहा है।
उसे इश्क़ है
खाने से और पीने से,
वह अक्सर चाँदनी चौक से लेकर जमा मस्जिद के इलाके में देखा गया है,
इश्क़ अपना
और पसंद अपनी-अपनी।
इसलिए करीने से प्यार करें
मोहब्बत कीजिए,
दिल लगाइए
इश्क़ का क्या है बाऊ जी,
लोग तो आजकल इश्क़ करते हैं
चाउमीन से,
मोमोस से
और समोसे-चटनी से,
अपना-अपना शौक है और अपना अपना राग है।
बाय द वे, आपको कौन-सा शौक है ?
बताने में शर्माइएगा नहीं।
और यह शब्द ही ऐसा है
जिस किसी को भी होता है,
तो वह न उम्र देखता है और न मजहब
वह तो ईश्वर से भी इश्क़ कर बैठता है,
और उसके चलते-फिरते प्रतिनिधियों से भी।
तो यदि आज तक
इस शब्द से परिचय नहीं हुआ,
तो मन लगा लीजिए
साधना कर लीजिए,
साधक बन जाइए
देखिएगा जीवन ही बदल जाएगा,
मन आस्था के नजदीक पहुँच जाएगा
और सुबह भी मोहब्बत और शाम भी मोहब्बत में तब्दील हो जाएगी,
यही जादू है
यही स्पंदन है मेरे भाई,
महसूस करके देखिए
इश्क़ की लौ जला कर देखिए,
देखिएगा किस तरह प्रकाश अंधकार का नाश करता है,
और उजाले से मन के सभी कोनों को प्रकाशवान करता है।
राधे राधे..।
तभी प्यून ने आकर तंद्रा तोड़ते हुए कहा,-“साहब, जयहिंद। चाय ले आऊं! पांडेय जी ने पैसे देते हुए कहा “ले आओ, मगर २० मिनट के बाद लाना।” और कहने के बाद पांडेय जी किसी फाइल में पुराने प्रेमी की भांति प्रेमिका के प्रेम पत्रों को खोजने लगे।
उन्हें बड़े दिनों से यह तकलीफ थी कि लोग बिजली का इस्तेमाल भी करते हैं, लेकिन जब भुगतान भरने की बात होती है तो आना-कानी करते हैं कि आजकल मीटर तेजी से दौड़ता है और इसका असर उनकी जेब पर पड़ता है, जबकि ऐसी कोई भी बात नहीं थी।
उधर, पड़ोसी राज्य ने प्री पैड बिजली के कार्ड की योजना बनाई हुई थी, जैसे मोबाइल का रिचार्ज करते हैं लोग, उसी तरह बिजली का रिचार्ज कार्ड भी था, वही व्यवस्था होनी चाहिए, तभी सुधरेंगे लोग, तभी सिस्टम होगा ठीक।
इतने में चाय आई तो समझिए १० मिनट का ब्रेक हुआ, लेकिन पांडेय जी का दिमाग कहाँ ब्रेक लेता है! सोचता रहता है हर समय।
पांडेय जी दफ्तर में बैठे थे कि उनके बगल का लाइनमैन आया और ‘सलाम साहब’ करके बोला-“साहब जी ये गले को क्या हुआ है! आवाज़ का कथक और कच्चीपुड़ी डांस हुआ लगता है!”
पांडेय जी ने कहा कि “नमाकुल बात तो ऐसी नहीं है, अभी दोपहर में खाने के बाद एक संतरा खाया था। लगता है उसी ने बदमाशी की है।”
बंगाली राम देशमुख ने कहा कि “पिछले दिनों मैंने भी कुछ अंड-बंड खा लिया था, तो गला ऐसे सो गया जैसे किसी गर्भिणी की चाल सरीखी चुगली उसकी ननद ने कर दी हो।”
“अच्छा बताओ तो तुमने क्या लिया!”
बंगाली राम देशमुख ने कहा-“आप ऐसा कीजिए, आपके अगल-बगल में होम्योपैथी की दुकान होगी।उससे ये दवाइयाँ मंगा लो, देखना १० दिन में गला एकदम चकाचक हो जाएगा।”
“अच्छा बोलो तो!”
बंगाली ने कहा:-ब्रेनोइया ३०- ५/५ ड्राप, हीपर सल्फर ६- ५/५ ड्राप,
इरालियरेसिमोसा मदर-१०/१० बूंद। शिवाए इंडिया की ही लेना।”
पांडेय जी ने कहा, “ले तो लूंगा, पर यार ये नाम इतने प्यारे हैं कि लगता है किसी दूसरी भाषा का प्रेम जग गया हो।” कहता हुआ बंगाली नमस्ते करता हुआ निकल गया।
पांडेय जी ने अपने चपरासी को दौड़ा दिया कैंटीन में, कि “जा कर फीकी चाय ले आना”, आज देर हो गई।
पांडेय जी आत्मचिंतन भी किया करते हैं, जब समय मिल जाए। और भाई साहब समय तो ऐसी चीज है, उसे चुराना पड़ता है। जैसे राधेलाल शर्मा ने उम्र के चौथे पड़ाव पर ‘तीसरी प्रेमिका’ लिख डाली। लिखने का माद्दा तो दर्जन भर का है, पर घर में रहना है और पड़ोस में भी एक आदर्श छवि भी बनाए रखना जरूरी है, नहीं तो घर-पड़ोस में यह खबर ब्रेकिंग न्यूज बन कर घूमेगी। क्या पता है बहन जी, वो अस्सी वाला बूढ़ा क्या आशिकी करता घूम रहा है! हमें क्या पता लगता वह तो भला हुआ रामकिशन पूनिया का, जो अग्रवाल स्वीट्स पर इनके पापा जी से मिल गया और उसने सारी दास्तां उगल डाली। हे राम क्या जमाना आ गया! एक हमारे हैं चिंटू के पापा! एक बार भी कसम से आई लव यू नहीं कहा और ये सदाबहार अंकल जुल्म पर जुल्म किए जा रहे हैं!!
तभी सरला आंटी ने गोलगप्पे को कोसते हुए कहा “कुछ सीखो बड़ी उम्र के लोग कहाँ जा रहे हैं! कुछ प्रेरणा लो।” बात तो सही थी। पता नहीं भगवान और क्या दिन दिखाएगा!
उधर, चुप्पी प्रसाद भट्ट सिनेरियो से गायब हो गया है। अंतर्मन ने कहा-भगवान कसम कब तक लोगों को पागल बनाओगे! अब लोग समझ चुके हैं कि दूसरे के कंधे पर बंदूक चलाना क्या होता है! एक ने कहा कि “अभी भी उनके साथ चूक चुके कारतूस है, संभल कर रहना पांडेय जी।”
पांडेय जी ने कहा-“अपन बड़े बोल तो बोलते नहीं, लेकिन एक फंडा है अपना, जिस गली जाना नहीं, तो भगवान कसम उस गली की हवा तक का भी स्पर्श नहीं करते, आई बात समझ में।”
तभी मोहन प्यारे सिंगापुर रिटर्न लेखक ने कहा कि-” भाई साहब जे बात बढ़िया कही।” पांडेय जी को जब-जब मोहन प्यारे जे बात बोलते थे, चित्तौड़गढ़ वाले चौबे जी याद आते थे। बहरहाल सारा दिमाग भट्ट और कलसी पर मत लगाया करो, जीवन में और भी विसंगतियाँ है, जो किसी न किसी बहाने अठखेलयाँ करने को बेताब रहती है, समझ रहे हो न!
पांडेय जी कई बातों को इग्नोर किया करते हैं, लेकिन कई बातों का स्वाद गजरौला के गुड की भांति जिव्हा पर बना ही रहता है,क्या समझें।
जीवन में समझने को कई बातें है लेकिन उनकी संगत में रामप्यारी में भी लेखकीय कीटाणु आ गए, तभी तो वह भी कहने लगी है-
“पांडेय जी इग्नोराय नमः
जमाना दुष्टों से भरा हुआ है
उनको और उनकी कुदृष्टि को सोचना बंद कर दें।
देखना कुछ दिनों बाद शीत लहर अपनी आहट से उन्हें प्रस्थान का रास्ता दिखा देंगी।”
अब पांडेय जी ने महसूस किया कि वाकई रामप्यारी की बात में दम है। तभी कुछ देर बाद रामप्यारी ने कहा,-“सुनिए जी, आपके भतीजे की शादी है, उसके लिए कुछ शॉपिंग करनी है। जरा अपनी जेब ढीली कर देना।”
अब जाकर समझें पांडेय जी
कि कुछ खास होने वाला है, वैसे भी घर की शांति बनाए रखने के लिए कुछ निवारण तो जरूरी है, चलिए यही सही।
आज पांडेय जी को बस में दयाल बाबू दिखाई दे गए। पांडेय जी ने पूछा कि “कब आए!”
कहने लगे कि “हमें तो आए पंद्रह मिनट हो गए।”
पांडेय जी ने सोचा कि गज़ब के व्यक्ति है दयाल बाबू। घर में मन नहीं लगा तो बस में बैठ गए, और तो और जब डिस्पेंसरी से दवाई लेनी होती है अंधेरे-अंधेरे यानी ६ बजे वाली मैट्रो पकड़ते हैं और पौने ७ से पहले दरवाजे पर अपना अधिपत्य जमा लेते हैं। चौकीदार भी उनके बाद पहुँचता है और घूरता हुआ अंदर जाता है और यह बड़बड़ाता होगा! “कहाँ-कहाँ से चले आते हैं और गेट पर ही आगंतुकों से विचार-विमर्श करने लग जाते हैं। भला हो डिस्पेंसरी का, जिसने इनको विमर्श करने का अड्डा दिया और मौका दिया, नहीं तो पता नहीं इस पीढ़ी का क्या हुआ होगा! राम बचाए ऐसे लोगों से।”